उच्चतम न्यायालय ने 4 जनवरी, 2018 को एक याचिका, जिसमें कार्यस्थल पर महिला यौन-उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध, निपटान) अधिनियम, 2013 के उचित क्रियान्वयन की बात कही गई, पर केंद्र एवं राज्य सरकारों को एक नोटिस जारी किया। यह जनहित याचिका एक एनजीओ ‘इनिशिएटिव फॉर इन्क्लूजन फाउण्डेशन’ द्वारा दायर की गई थी।

याचिकाकर्ता द्वारा कहा गया कि कार्यस्थल पर यौन-उत्पीड़न को रोकने के लिए कानून के अंतर्गत प्रदत्त तंत्रा को पूरी तरह से स्थापित नहीं किया गया है। कानून को लागू करने के लिए जरूरी समस्त अवसंरचना में प्रत्येक संगठन में आंतरिक शिकायत समिति (चाहे यह सरकारी हो या निजी हो), एक स्थानीय शिकायत समिति (एलसीसी) की स्थापना, अधिनियम के तहत् शक्तियों का पालन करने के लिए जिला अधिकारी के तौर पर एक जिला न्यायाधीश को पदस्थ करना, तथा नोडल अधिकारियों की नियुक्ति करना शामिल है।

कार्यस्थल पर महिला यौन-उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध, निपटान) अधिनियम, 2013 शिकायतें प्राप्त करने और प्रत्येक को सम्बद्ध एलसीसी को अग्रेषित करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रा या जनजातीय क्षेत्रों में प्रत्येक खण्ड, तालुका और तहसील में और शहरी क्षेत्रों में वार्ड या नगरपालिका में नोडल अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान करता है।

याचिकाकर्ता ने न्यायालय को बताया कि, यद्यपि संसद द्वारा कानून पारित किए चार वर्ष हो चुके हैं, तथापि जिस समस्त ढांचे को पूरी तरह संचालन की स्थिति में आ जाना चाहिए था, वह अभी तक निष्क्रिय बना हुआ है। इस प्रकार, महिलाओं के मौलिक अधिकारों और उनकी गरिमा भंग हो रही है।

संक्षिप्त सुनवाई के पश्चात्, न्यायालय मामले की जांच करने पर सहमत हुआ और सप्ताह के भीतर राज्यों और संघ-शासित क्षेत्रों को अपने स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने के निर्देश दिए।

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