कृषि संबंधी निकाय

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) की स्थापना 1965 में, राष्ट्रीय डेयरी विकास अधिनियम, 1987 के अंतर्गत तत्कालीन प्रधानमंत्राी लाल बहादुर शास्त्राी की भारत के अन्य हिस्सों में कैश को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर यूनियन (अमूल) की सफलता को पहुंचाने की इच्छा पूर्ति के रूप में हुई। इसकी संस्थापना डॉ. वर्गीज कुरियन द्वारा की गई। इसका मुख्य कार्यालय आनंद (गुजरात) में है और पूरे देश में इसके क्षेत्राीय कार्यालय हैं। एनडीडीबी की सब्सिडियरी में मदर डेयरी, दिल्ली शामिल है।

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के निदेशक मण्डल में निम्न सदस्य शामिल हैंµ

(a) एक अध्यक्ष;

(b) केंद्र सरकार के अधिकारियों में से एक निदेशक;

(c) राज्य को-ऑपरेटिव डेयरी संघ के अध्यक्षों में से दो निदेशक;

(d) पूर्णकालिक निदेशकों, तीन से अनधिक, को राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के उच्च स्तरीय कार्यकारियों में से लिया जाएगा; और

(e) राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के बाहर से, विशेषज्ञ होने के नाते, एक निदेशक।

बोर्ड के कृत्य एवं दायित्वः * डेयरी एवं सम्बद्ध उद्योगों के विकास हेतु योजना एवं कार्यक्रम बनाना।

* अन्य कृषि आधारित उद्योगों हेतु गहन एवं देशव्यापी कार्यक्रम चलाना और ऐसे कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के लिए सहायता मुहैया कराना।

* गहन एवं देशव्यापी आधार पर बेहद प्रभावपूर्ण तरीके से सहकारिता रणनीति अपनाना।

भारतीय खाद्य निगम

देश में खाद्यान्नों के न्यायपूर्ण वितरण एवं उनके मूल्यों में स्थायित्व लाने के उद्देश्य से भारतीय खाद्य निगम की स्थापना 1965 में की गई थी। अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए भारतीय खाद्य निगम सरकार के लिए खाद्यान्नों की खरीद करता है तथा खाद्यान्न का बफर स्टॉक बनाता है। निगम इस प्रकार से स्टॉक किए गए खाद्यान्न को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत उचित मूल्य की दुकानों पर विक्रय के लिए उपलब्ध कराता है। निगम खाद्यान्नों के विदेशी व्यापार में भी सक्रिय भूमिका निभाता है। सरकार की ओर से विदेशों में खाद्यान्न का क्रय-विक्रय करना निगम का महत्वपूर्ण कार्य है। इनके अतिरिक्त कृषि फसलों व तकनीकों के बारे में अनुसंधान करना व खाद्यान्नों के भंडारण क्षमता में वृद्धि करना भी निगम के कार्यों में सम्मिलित है।

निगम का संगठनः भारतीय खाद्य निगम का एक मुख्यालय एवं पांच क्षेत्राीय कार्यालय हैं। इसमें एक अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, एक अतिरिक्त सचिव एवं वित्त सलाहकार, एक संयुक्त सचिव (भंडारण) एवं छह सदस्य होते हैं।

निगम के उद्देश्य एवं दायित्वः भारतीय खाद्य निगम की स्थापना खाद्य निगम अधिनियम, 1964 के तहत् खाद्य नीति के निम्नलिखित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए की गईः

* किसानों के हितों को सुरक्षित रखने के लिए प्रभावी मूल्य समर्थन

* सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत् देशभर में खाद्यान्नों का वितरण

* राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए खाद्यान्नों के प्रचालन तथा बफर स्टॉक के संतोषजनक स्तर को बनाए रखना।

* राष्ट्र सेवा के अपने 45 वर्षों के दौरान, भारतीय खाद्य निगम ने आपदा प्रबंधन उन्मुखी खाद्य व्यवस्था को स्थिर सुरक्षा प्रणाली में सफलतापूर्वक रूपांतरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।

* किसानों को लाभकारी मूल्य उपलब्ध कराना

* उचित मूल्यों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना, विशेष रूप से समाज के कमजोर वर्गों को

* खाद्य सुरक्षा के उपाय के तौर पर बफर स्टॉक बनाए रखना

* मूल्य स्थिरिता के लिए बाजार में हस्तक्षेप करना

एफसीआई का पुनर्निर्माणः भारतीय खाद्य निगम के पुनर्निर्माण पर एक उच्च स्तरीय समिति (एचएलसी) का गठन भारत सरकार द्वारा अगस्त 2014 को किया गया जिसने 19 जनवरी, 2015 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। समिति द्वारा खोजे गए तथ्य, सब्सिडीज सहित व्यय को तर्कसंगत करने में सरकार की मदद करेंगे, जिसमें राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के क्रियान्वयन में होने वाली लागत शामिल है।

समिति द्वारा खोजे गए मुख्य तथ्य इस प्रकार हैंः

(i) एफसीआई को प्रत्यक्ष रूप से चावल एवं गेहूं बेचने से केवल 6 प्रतिशत किसान लाभान्वित हुए हैं।

(ii) अधिकतर किसानों को एफसीआई और इसकी प्रापण गतिविधियों के बारे में मालूम नहीं था। उदाहरणार्थ, मात्रा 25 प्रतिशत चावल उत्पादक किसान और 35 प्रतिशत गेहूं उत्पादक किसान इस बारे में जानते थे।

(iii) 2011 में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में छीजन 46.7 प्रतिशत थी, और कुछ राज्यों में यह 90 प्रतिशत तक थी, जिसने अर्थशास्त्रिायों एवं विश्लेषकों के अत्यंत डर की पुष्टि की। अनगिनत हैंडलिंग, घटिया वैगन और रेल प्वाइंट्स पर अपर्याप्त सुरक्षा क्षतियों के मुख्य कारकों में हो सकते हैं।

(iv) 2011-12 से 2013-14 के दौरान खाद्यान्न का वास्तविक औसत भण्डार 73 मिलियन मिट्रिक टन (एमएमटी) था जो संभावित बफर स्टॉक से 40 एमएमटी अधिक था।

आर्थिक रूप से कमजोर उपभोक्ताओं को प्रभावी रूप से अनाज प्रदान करने, अनाज बाजार को स्थिर करने, और प्रापण लाभ अधिक संख्या में किसानों तक पहुंचाने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के पुनरोन्मुख को सुनिश्चित करने के क्रम में एचएलसी ने निम्न अनुशंसाए दीं।

* एफसीआई को पंजाब, हरियाणा और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों को छोड़ देना चाहिए जिन्होंने प्रापण हेतु अवसंरचना का सृजन कर लिया है, और असम, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की तरफ जाना चाहिए जहां किसान निराशाजनक बिक्री से पीड़ित हैं।

* भारत सरकार को बिना किसी भौतिक रूप से हैंडलिंग अनाज के नकद की संभावनाओं की तरफ बढ़ने का विस्तार करना चाहिए।

* भारत सरकार को 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले बड़े शहरों के साथ शुरू करते हुए लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत, धीरे-धीरे नकद अंतरण को प्रस्तावित करना चाहिए।

* एफसीआई को अपने भण्डारण प्रचालनों को निजी क्षेत्रा को सौंपना चाहिए।

* भारत सरकार को अपनी प्रापण एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य नीति को फिर से देखने की आवश्यकता है, जो एमएसपी के तहत् दलहन एवं तिलहन के साथ 23 मदों को शामिल होने के बावजूद मुख्य रूप से चावल और गेहूं पर बल देती है।

* एफसीआई को बाजार में स्टॉक भेजने के लिए एक पेशेवर सक्रिय तरलता नीति प्रस्तुत करनी चाहिए, जब कभी संभावित बफर स्टॉक अत्यधिक हो जाए।

* भोजन की अपर्याप्तता को संबोधित करने के लिए, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत् 80 करोड़ लोगों के होते हुए वास्तविक तौर पर भूखे लोगों की पहचान एवं लक्ष्य करने हेतु सरकार को शहरी निकायों एवं पंचायती राज संस्थानों को शामिल करने पर विचार करना चाहिए।

* एफसीआई खाद्य बाजारों को स्थिर करने के लिए एमएसपी के अंतर्गत मदों की सूची में संशोधन कर सकती है।

भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण

भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई), एक संविधिक निकाय, की स्थापना खाद्य सम्बद्ध मुद्दों को देखने के लिए खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 के अंतर्गत की गई। एफएसएसएआई का सृजन मानक उपभोग हेतु सुरक्षित एवं समग्र भोजन सुनिश्चित करने के लिए भोजन मदों हेतु विज्ञान-आधारित मानक तैयार करने और उनके विनिर्माण, भण्डारण, वितरण, बिक्री और आयात को विनियमित करने के लिए किया गया।

प्राधिकरण में एक अध्यक्ष और 22 सदस्य होते हैं जिनमें से दो-तिहाई महिलाएं होती हैं।

प्राधिकरण के कृत्यः प्राधिकरण निम्न कृत्य करता हैµ

* भोजन मदों के संबंध में मानकों एवं दिशा-निर्देशों को लागू करने हेतु विनियमन तैयार करना और विभिन्न मापदण्डों या मानकों के प्रवर्तन के उचित तंत्रा को विनिर्दिष्ट करना।

* खाद्य व्यवसाय हेतु भोजन सुरक्षा प्रबंधन तंत्रा हेतु प्रमाणीकरण में संलिप्त प्रमाणीकरण निकायों के लिए तंत्रा एवं दिशा-निर्देशों को निर्धारित करना।

* प्रयोगशालाओं के अनुमोदित मापदण्डों हेतु प्रक्रिया एवं दिशा-निर्देश निर्धारित करना और अनुमोदित प्रयोगशालाओं के लिए अधिसूचना जारी करना।

* खाद्य सुरक्षा एवं पोषण के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष क्षेत्रों में नीति एवं नियम बनाने के मामलों में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को तकनीकी मदद एवं वैज्ञानिक सलाह प्रदान करना।

* खाद्य सुरक्षा और खाद्य मानकों के बारे में सामान्य जानकारी का संवर्द्धन करना।

* भोजन, स्वच्छता एवं मानकों के लिए अंतरराष्ट्रीय तकनीकी मानकों के विकास में योगदान देना।

* खाद्य व्यवसाय में संलग्न या संलग्न की तैयारी करने वाले लोगों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाना।

* पूरे देश में एक सूचना तंत्रा स्थापित करना ताकि लोग, उपभोक्ता, पंचायतें इत्यादि खाद्य सुरक्षा एवं सम्बद्ध मामलों के बारे में त्वरित, विश्वसनीय एवं उद्देश्यपरक सूचना प्राप्त कर सकें।

राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम

राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी) की स्थापना वर्ष 1963 में संसद के एक अधिनियम द्वारा कृषि मंत्रालय के अंतर्गत एक संविधिक निगम के रूप में की गई थी।

संगठन एवं प्रबंधनः निगम की नीतियों तथा कार्यक्रमों का निर्माण करने के लिए निगम का प्रबंधन एक व्यापक प्रतिनिधित्व वाली 51 सदस्यीय सामान्य परिषद् में तथा दिन-प्रतिदिन के कार्यकलापों को निष्पादित करने के लिए एक 12 सदस्यीय प्रबंध मंडल में निहित है। अपने प्रधान कार्यालय के अलावा एनसीडीसी अपने 18 क्षेत्राीय/राज्य निदेशालयों के माध्यम से कार्य करता है। प्रबंध निदेशक मुख्य कार्यपालक हैं। विभिन्न कार्यात्मक प्रभाग कार्यक्रमों के कार्यों की देखरेख करते हैं। क्षेत्राीय कार्यालय, परियोजनाओं की पहचान करने/परियोजना की तैयारी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा इसके कार्यान्वयन की निगरानी करते हैं। परियोजनाओं की पहचान करने/तैयार करने और उनका सफल कार्यान्वयन करने में सहकारिताओं की सहायता करने हेतु एनसीडीसी सहकारिता, संगठन एवं पद्धति, वित्तीय प्रबंधन, प्रबंध सूचना प्रणाली, चीनी, तिलहन, वस्त्रा, फल एवं सब्जी, डेरी, कुक्कुटपालन एवं पशुधन, मत्स्यपालन, हथकरघा, सिविल इंजीनियरिंग, रेफ्रीजरेशन एवं प्रिजर्वेशन के क्षेत्रा में तकनीकीय और प्रबंधकीय सक्षमताओं से सुसज्जित है।

निगम के प्रकार्य एवं दायित्वः कृषि उत्पादों, खाद्यान्नों, कुछेक अन्य अधिसूचित वस्तुओं अर्थात् उर्वरकों, कीटनाशकों, कृषि मशीनरी, लोक, साबुन, मिट्टी का तेल, वस्त्रा, रबड़ आदि के उत्पादन, प्रसंस्करण, विपणन, भंडारण, निर्यात तथा आयात के कार्यक्रमों का नियोजन, संवर्द्धन तथा वित्त पोषण करना, सहकारिताओं के माध्यम से उपभोक्ता वस्तुओं की आपूर्ति करना तथा कुक्कुटपालन, डेयरी, मछलीपालन, कीटपालन, हथकरघा आदि जैसे आय सृजित करने वाले कार्यकलापों के अलावा लघु वनोपजों के एकत्राण, प्रसंस्करण, विपणन, भंडारण तथा निर्यात करना।

एनसीडीसी अधिनियम में आगे संशोधन किया गया जिससे विभिन्न प्रकार की सहकारिताओं को सहायता देने हेतु निगम के कार्यक्षेत्रा का विस्तरण हुआ तथा इसके वित्तीय आधार का विस्तारण हुआ। एनसीडीसी अब ग्रामीण औद्योगिक सहकारी क्षेत्रों तथा जल संरक्षण, सिंचाई तथा लघु सिंचाई, कृषि-बीमा, कृषि-ऋण, ग्रामीण स्वच्छता, पशु स्वास्थ्य आदि जैसी ग्रामीण क्षेत्रों की कुछेक अधिसूचित सेवाओं हेतु परियोजनाओं का वित्तपोषण कर सकता है।

प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तर की सहकारी समितियों का वित्तपोषण करने हेतु राज्य सरकारों को ऋण तथा अनुदान दिए जाते हैं तथा एक राज्य से बाहर व्यवसाय करने वाली राष्ट्रीय स्तर की तथा अन्य समितियों को सीधे ऋण तथा अनुदान दिए जाते हैं। निगम अब निर्धारित शर्तें पूरी करने पर अपनी सहायता की विभिन्न स्कीमों के अंतर्गत परियोजनाओं को प्रत्यक्ष वित्तपोषण भी कर सकता है।

वित्त एवं वित्तपोषणः धन के òोतः आंतरिक उपचयन बाजार उधार तथा अंतरराष्ट्रीय सहायता समेत भारत सरकार से आबंटन।

जिन उद्देश्यों हेतु सहायता दी जाती हैµ

* कार्यशील पूंजी वित्त जुटाने हेतु मार्जिन मनी (100%ऋण)

* समितियों के अंशपूंजी आधार का सुदृढ़ीकरण (100% ऋण)

* क्षेत्राीय/राज्य स्तर के विपणन संघ को कार्यशील पूंजी (100% ऋण)

* गोदामों, शीत भंडारों, उपस्कर वित्तपोषण, परिवहन वाहनों, नावों की खरीद एवं अन्य ठोस आस्तियों जैसी ढांचागत सुविधाओं के सृजन हेतु आवधिक ऋण।

* नए कृषि प्रसंस्करण उद्योगों की स्थापना, आधुनिकीकरण/ विस्तारण/पुनर्स्थापन/विविधीकरण हेतु अवधिक एवं निवेश ऋण।

* परियोजना रिपोर्टों/व्यवहार्यता अध्ययनों आदि की तैयारी हेतु सब्सिडी

स्वीकृति की प्रक्रिया/सहायता का संवितरणः एनसीडीसी की सहायता वैयक्तिक लाभोन्मुखी न होकर सहकारिताओं के संस्थागत विकास के निहितार्थ है। एनसीडीसी राज्य सरकारों के प्रयासों को सम्पूरित करता है। राज्य सरकारें निर्धारित स्कीम प्रपत्रा में वैयक्तिक समिति/ परियोजना के प्रस्तावों की संस्तुति करते हुए एनसीडीसी को भेजती हैं। समिति निर्धारित शर्तों को पूरा करके सहायता की विभिन्न स्कीमों के अंतर्गत परियोजनाओं हेतु प्रत्यक्ष धन प्राप्त कर सकती है। प्रस्तावों की जांच-पड़ताल संबंधित कार्यात्मक प्रभागों में की जाती है और यदि आवश्यक हो तो स्थल मूल्यांकन किया जाता है। तत्पश्चात् राज्य सरकार/समिति को धन की औपचारिक स्वीकृति संसूचित की जाती है। धन की विमुक्ति, कार्यान्वयन की प्रगति तथा प्रतिपूर्ति के आधार पर निर्भर करती है। ऋणों को वापिस करने की अवधि 3 से 8 वर्ष के बीच होती है। ब्याज की दरें समय-समय पर भिन्न-भिन्न होती हैं।

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा)

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) की स्थापना दिसंबर, 1985 में संसद द्वारा पारित कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादन निर्यात विकास प्राधिकरण अधिनियम के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा की गई। इस अधिनियम (1986 का 2) को 13 फरवरी, 1986 से लागू किया गया। प्राधिकरण ने संसाधित खाद्य निर्यात प्रोत्साहन परिषद् का स्थान लिया।

प्राधिकरण का संगठनात्मक स्वरूपः जैसा कि संविधान में निर्धारित किया गया है उसके अनुसार प्राधिकरण के निम्नलिखित सदस्य हैंµ

(क) केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त अध्यक्ष

(ख) भारत सरकार का कृषि विपणन सलाहकार

(ग) योजना आयेाग के रूप में सरकार द्वारा नियुक्त एक सदस्य

(घ) तीन सांसद, दो लोकसभा द्वारा निर्वाचित, एक राज्य सभा द्वारा निर्वाचित

(ङ) भारत सरकार के मंत्रालयों से क्रमशः संबंध रखने तथा प्रतिनिधित्व करने वाले 8 सदस्यों को सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।

(i) कृषि एवं ग्रामीण विकास

(ii) वाणिज्य

(iii) वित्त

(iv) उद्योग

(v) खाद्य

(vi) नागरिक आपूर्ति

(vii) नागर विमानन

(viii) जहाजरानी एवं परिवहन

(च) राज्यों तथा संघशासित प्रदेशों के प्रतिनिधि के रूप में वर्णक्रम के अनुसार चक्रानुक्रम से 5 सदस्यों को केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।

(छ) निम्नलिखित के प्रतिनिधि के रूप में केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त 7 सदस्य

(i) भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद

(ii) राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड

(iii) राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ

(iv) केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान

(v) भारतीय पैकेजिंग संस्थान

(vi) मसाला निर्यात संवर्धन परिषद तथा

(vii) काजू निर्यात संवर्धन परिषद।

(ज) निम्नलिखित के प्रतिनिधि के रूप में केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त 12 सदस्यः

(अ) फल तथा सब्जी उत्पाद उद्योग

(ब) मांस, कुक्कुट तथा डेयरी उत्पाद उद्योग

(स) अन्य अनुसूचित उत्पाद उद्योग

(द) पैकेजिंग उद्योग

(i) कृषि अर्थशास्त्रा तथा अनुसूचित उत्पादों के विपणन के क्षेत्रा में विशेषज्ञों तथा वैज्ञानिकों में से केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त 2 सदस्य।

प्रशासनिक ढांचाः अध्यक्ष-केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त।

निदेशक-एपीडा द्वारा नियुक्त।

सचिव-केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त।

प्राधिकरण के अन्य अधिकारी एवं स्टाफः एपीडा अधिनियम की धारा 7;3द्ध में प्रावधान है कि प्राधिकरण अपने कार्यों के कुशल निष्पादन के लिए आवश्यक अधिकारियों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति कर सकता है।

एपीडा की विद्यमानताः एपीडा ने भारत के लगभग सभी कृषि संभाव्य राज्यों में अपनी विद्यमानता स्थापित कर ली है और अपने प्रधान कार्यालय 5 क्षेत्राीय कार्यालय और 13 आभासी कार्यालयों के द्वारा कृषि निर्यात समुदाय को सेवाएं प्रदान करता रहा है।

एपीडा ने संबंधित राज्य सरकारों/एजेंसियों के सहयोग से इन आभासी कार्यालयों को स्थापित किया है। एपीडा की योजनाओं तथा इन योजनाओं के अंतर्गत उपलब्ध सहायता के संबंध में उद्यमियों तथा संभावित निर्यातकों को इन आभासी कार्यालयों द्वारा मूलभूत सूचना उपलब्ध कराई जाती है।

एपीडा के कृत्य एवं दायित्वः कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण अधिनियम (1986 का 2) के अनुसार प्राधिकरण को निम्नलिखित कार्य सौंपे गए हैंµ

(क) वित्तीय सहायता प्रदान कर या सर्वेक्षण तथा सम्भाव्यता अध्ययनों, संयुक्त उद्यमों के माध्यम से साम्या पूंजी लगाकर तथा अन्य राहतों व आर्थिक सहायता योजनाओं के द्वारा अनुसूचित उत्पादों के निर्यात से सम्बद्ध उद्योगों का विकास करना।

(ख) निर्धारित शुल्क के भुगतान पर अनुसूचित उत्पादों के निर्यातकों के रूप में व्यक्तियों का पंजीकरण करना

(ग) निर्यात उद्देश्य के लिए अनुसूचित उत्पादों के मानक तथा विनिर्देश तय करना।

(घ) बूचड़खानों, संसाधन संयंत्रों, भंडारण स्थानों, वाहनों या अन्य स्थानों में जहां ऐसे उत्पाद रखे जाते हैं या उन पर कार्य किया जाता है, उन उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से निरीक्षण करना।

(ङ) अनुसूचित उत्पादों के पैकिंग में सुधार करना।

(च) भारत से बाहर अनुसूचित उत्पादों के विपणन में सुधार करना।

(छ) निर्यातोन्मुख उत्पादन का प्रोत्साहन तथा अनुसूचित उत्पादों का विकास।

(ज) उत्पादन, प्रसंस्करण, पैकेजिंग, विपणन या अनुसूचित उत्पादों के निर्यात में लगे संगठनों या कारखानों के मालिकों या अनुसूचित उत्पादों से सम्बद्ध मामलों के लिए निर्धारित ऐसे अन्य व्यक्तियों से आंकड़े एकत्रा करना तथा इस प्रकार एकत्रित किए गए आंकड़ों या उनके किसी एक भाग या उनके उद्धरण प्रकाशित करना।

(झ) अनुसूचित उत्पादों से जुड़े उद्योगों के विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षण देना।

(ट) निर्धारित किए गए ऐसे अन्य मामले।

एपीडा को निम्नलिखित उत्पादों के निर्यात एवं संवर्धन एवं विकास का उत्तरदायित्व सौंपा गया है

  1. फल, सब्जी तथा उनके उत्पाद।
  2. मांस तथा मांस उत्पाद।
  3. कुक्कुट तथा कुक्कुट उत्पाद।
  4. डेयरी उत्पाद।
  5. कन्फेक्शनरी, बिस्कुट तथा बेकरी उत्पाद।
  6. शहद, गुड़ तथा चीनी उत्पाद।
  7. कोको तथा उसके उत्पाद, सभी प्रकार के चॉकलेट।
  8. मादक तथा गैर-मादक पेय।
  9. अनाज उत्पाद।
  10. मूंगफली, चीनी या बादाम और अखरोट।
  11. अचार, पापड़ और चटनी।
  12. ग्वार गम।
  13. पुष्पकृषि तथा पुष्पकृषि उत्पाद।
  14. जड़ी बूटी तथा औषधीय पौधे।
  15. चावल (गैर-बासमती)

इसके अतिरिक्त बासमती चावल, गेहूं तथा मोटे अनाज एवं चीनी निर्यात के ठेके भी एपीडा के साथ पंजीकृत होने जरूरी हैं।

Pin It on Pinterest

Share This