दिसंबर 2018 में, सर्वोच्च न्यायालय ने जेलों में बंद कैदियों की दयनीय अवस्था के मामले में सरकार से कहा है कि वह सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस महानिदेशकों के साथ फरवरी 2018 में बैठक करके ओपन प्रिजन बनाने को लेकर विचार-विमर्श करे। खुली जेल किस प्रकार काम करेगी, इसका प्रारूप कैसा होगा, इसमें कैसे कैदियों को रखा जाएगा, इन सभी पहलुओं पर उच्चतम न्यायालय ने अध्ययन करने की जिम्मेदारी गृह मंत्रालय को सौंपी है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि कोई कैदी पहली बार किसी अपराध में जेल गया है या फिर ऐसे कैदी जो मामूली अपराधों में जेल गए हैं, इनमें से किन कैदियों को ओपन जेल में रखना सही होगा? न्यायालय ने कहा कि इस मामले में हमें आपस में मिलकर आगे बढ़ना होगा। जेल नियमों को लेकर सभी राज्य सरकारों के पास अपने-अपने दिशा-निर्देश हैं, इसलिए किसी प्रकार की ऊहापोह की स्थिति उत्पन्न न हो। इस मामले पर अगली सुनवाई फरवरी 2018 में होगी।

उल्लेखनीय है कि विगत् सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरकार की आलोचना की थी कि वह ऐसे विचाराधीन बंदियों को भी जेल से रिहाई नहीं दे रही है जिन्हें छोड़ा जा सकता है। जेलों में क्षमता से अधिक कैदी हैं, इसके बावजूद छूटने योग्य कैदियों को रिहा नहीं किया जाता। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि देश की कई जेलों में क्षमता से लगभग 14 प्रतिशत अधिक कैदी हैं। छत्तीसगढ़ और दिल्ली में तो हालात यह हैं कि यहां की जेलों में दोगुने से भी अधिक कैदी हैं। आंकड़ों के अनुसार, जेलों में बंद कुल कैदियों में से 67 प्रतिशत विचाराधीन कैदी हैं।

दरअसल, खुली जेल (ओपन प्रिजन) खुले में बनी जेल है, जिसमें एक छोटा घर दिया जाता है और जिसमें कैदी को अपने परिवार के साथ रहने की अनुमति दी जाती है। कैदी एक निर्धारित दायरे में काम के लिए जाता है और फिर काम खत्म होने पर वापस लौट आता है। भारत में सर्वाधिक ओपन जेल राजस्थान में हैं और यहां वर्ष 1955 से सफलतापूर्वक चलाई जा रही हैं।

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