पुर्तगालियों के आगमन—भारत में आने वाले प्रथम यूरोपियन जिन्होंने भारत में अपने शक्ति केंद्र स्थापित किए—ने इस विशाल भू-भाग की कोलाहलपूर्ण स्थिति को उजागर किया। यद्यपि शक्तिशाली मुगलों ने अपने साम्राज्य का निर्माण एवं विस्तार किया, तथापि वे कभी भी समुद्री प्रभुत्व हासिल नहीं कर सके। दूसरी ओर, यूरोपियों ने उपनिवेशी साम्राज्य का निर्माण अपनी नौसेना (समुद्री शक्ति) के बल पर किया।
यह पुस्तक यूरोपियों के आगमन और भारत पर ब्रिटिश शासन के क्रमिक प्रभुत्व से लेकर उपनिवेशी शासन से भारत की स्वतंत्रता तक की अशांत अवधि की समीक्षा करती है।
यह पुस्तक भारत पर ब्रिटिश शासन की आर्थिक तथा प्रशासनिक नीतियों के प्रभाव के अलावा, सामाजिक-आर्थिक मोर्चे पर परिवर्तनों, सुधार आंदोलनों, प्रेस के विकास और शैक्षिक प्रगति पर भी विमर्श करती है।
पुस्तक स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात की चुनौतियों और लोगों द्वारा मतदान के माध्यम से चुनी गई विभिन्न सरकारों के कार्यों का भी संक्षिप्त परीक्षण करती है।
परिशिष्ट में अध्यायों में उल्लिखित व्यक्तित्वों के अलावा राष्ट्रीय आंदोलन के विभिन्न चरणों से संबद्ध विशिष्ट व्यक्तित्वों को भी शामिल किया गया है। एक विशेष खंड में महिला स्वतंत्रता सेनानियों को समाविष्ट किया गया है। इस खंड में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन
(1885–1950); जातीय आंदोलन; भारत के गवर्नर-जनरल तथा वायसराय: उनके शासनकाल की महत्वपूर्ण घटनायें; तथा समाचार-पत्र एवं जर्नल्स से संबंधित सूची एवं तालिकाएं भी शामिल हैं।
यह संशोधित संस्करण विभिन्न जनजातीय आंदोलनों, संवैधानिक विकासक्रमों, श्रमिक आंदोलनों तथा स्वतंत्रता आंदोलन से सम्बद्ध व्यक्तियों के संबंध में नवीन जानकारी का समावेश करता है।