निजता का अधिकार: भारतीय परिप्रेक्ष्य

  • भारत के संविधान में निजता का अधिकार स्पष्ट नहीं है, इसलिए यह न्यायिक व्याख्या का विषय है। मौलिक अधिकार की न्यायिक व्याख्याएं इसे मौलिक अधिकार के दायरे में लाती हैं।

   दर्शन

  • 1890 में, शमूएल वारेन और लुई ब्रैंडीइस ने निजता की धारणा विकसित की; उन्होंने ‘भावनात्मक क्षति ‘ के रूप में इसकी पहचान की और इसे कानूनी क्षति माना.निजता पर हमले से वयक्ति मानसिक प्रताड़ना एवं दुःख से गुजरता है

    भारत में निजता  के अधिकार का विकास

  • हिंदुओं के प्राचीन पाठ में गोपनीयता की अवधारणा का पता लगाया जा सकता है यदि हम हितोपदेश को पढ़े तो उसमे लिखा है कि पूजा, यौन क्रिया और परिवार के मामलों की तरह कुछ चीजें प्रकटीकरण से परे होनी चाहिए. यह अवधारणा भारतीय संस्कृति के लिए पूरी तरह से अजनबी नहीं है, लेकिन कुछ विधिवेत्ताओ ने इसके भारत में विकास के बारे में संदेह किया है
  • आधुनिक भारत में पहली बार सवैधानिक सभा में निजता के विषय पर चर्चा हुई थी जब के एस करीमद्दीन ने अमेरिकी संविधान की तर्ज पर एक संशोधन रखा , पर  बी आर अम्बेडकर ने इसे केवल सीमित समर्थन दिया और  संविधान में निजता के अधिकार का समावेश नहीं हो पाया
  • एम.पी.शर्मा बनाम सतीश चंद्र मुक़दमे में तलाशी और जब्ती की शक्ति के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वे निजता के अधिकार को मूल अधिकारों के अंतर्गत नहीं ला सकते क्योंकि भारतीय सविधान में इसके बारे में कुछ नहीं कहा गया और संविधान निर्माताओं की निजता के अधिकार के बारे में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी
  • एम.पी. शर्मा वाद के बाद खारक सिंह मामले में उच्चतम न्यायालय के सामने ये मामला आया कि क्या उत्तर प्रदेश के नियमन 236 के तहत परिभाषित पीछा करना जासूसी करना मौलिक अधिकार का उल्लंघन है और  निजता मौलिक अधिकार के दायरे में आता है
  • न्यायालय ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार मानने से इनकार किया और उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि “निजता का अधिकार हमारे संविधान के तहत एक गारंटीकृत अधिकार नहीं है और इसलिए किसी व्यक्ति के गमनागमन के बारे में पता लगाने का प्रयास निजता पर तो आकर्मण है परन्तु मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं.
  • मेनका गांधी बनाम संघ वाद में, सर्वोच्च न्यायालय ने व्यापक अर्थों में अनुच्छेद 21 की व्याख्या की.न्यायालय ने कहा कि व्यक्तिगत सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता ये दोनों अधिकार
  • अनुच्छेद 21 में ‘प्राकृतिक कानून’ में अन्तर्निहित हैं
  • मेनका गांधी मामले ने “राइट टू लाइफ़” अर्थात जीने के अधिकार की व्यापक व्याख्या शुरू की, जिसने वास्तव में निजता के अधिकार को राइट टू लाइफ़ के दायरे में शामिल करने में मदद की।
  • उन्नी कृष्णन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य ने जीवन के अधिकार के बारह अर्थों को क्रमांकित किया और निजता     का अधिकार उनमें से एक था.
  • राजगोपाल उर्फ ​​आर आर गोपाल बनाम तमिलनाडु राज्य पहला मामला था, जिसने विस्तार से निजता के अधिकार के विकास और व्यापकता की व्याख्या की. इस प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने के लिए, उच्चतम न्यायालय ने निजता, उसके विकास और विषय क्षेत्र के सम्पूर्ण न्यायशास्त्र पर सविस्तार विचार किया
  • पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया वाद फोन टैपिंग से संबंधित है और इसमें चर्चा की गई है कि क्या टेलीफोन टैपिंग अनुच्छेद 21 के तहत गोपनीयता अथवा निजता के अधिकार का उल्लंघन है
  • कर्नाटक राज्य बनाम कृष्णप्पा वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने बाल बलात्कार को गोपनीयता/निजता  के अधिकार से जोड़ा डॉ। मुख्य न्यायाधीश ए.एस. आनंद ने कहा कि “एक अमानवीय कृत्य होने के अलावा यौन हिंसा एक महिला की गोपनीयता और पवित्रता के अधिकार का अवैध अतिक्रमण है . यह उसके  सम्मान पर एक गंभीर चोट है और उसके  आत्म सम्मान और गरिमा को समाप्त करता है-यह शिकार को अपमानित करता है और जहां पीड़ित एक असहाय निर्दोष बच्चा है, यह जीवन भर के लिए एक दर्दनाक अनुभव छोड़ देता है “
  • कर्नाटक राज्य बनाम एस नागराजु और सुधांशु शेखर साहू बनाम  उड़ीसा राज्य वाद में  सर्वोच्च न्यायालय ने फिर से उपरोक्त बात स्वीकार की . सर्वोच्च न्यायालय ने सजा की मात्रा को बढ़ाने के लिए गोपनीयता के अधिकार की अवधारणा का इस्तेमाल किया
  • फिर से मध्य प्रदेश राज्य बनाम बाबूलाल वाद में उच्चतम न्यायालय ने माना कि यौन उत्पीड़न एक अमानवीय कृत्य के अतिरिक्त महिला की गोपनीयता और पवित्रता के अधिकार पर एक अवैध हमला भी है
  • नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा का अनुच्छेद 17 गोपनीयता/निजता के अधिकार के बारे में बताता है, “किसी की निजता, परिवार या संचार के साथ मनमाना या गैरकानूनी हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा, न ही उसके सम्मान और प्रतिष्ठा पर अवैध अतिक्रमण “
  • मानव अधिकार 1 948 के सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 12 में लिखा है , ” किसी की निजता, परिवार या संचार के साथ मनमाना या गैरकानूनी हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा, न ही उसके सम्मान और प्रतिष्ठा पर अवैध अतिक्रमण. हर किसी को इस तरह के हस्तक्षेप या अतिक्रमण  के खिलाफ कानून का संरक्षण है “।
  • चूंकि भारत ने सिविल और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा तथा 1 948 में मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा पर हस्ताक्षरकर्ता किये हैं अतः भारत को इन अधिकारों को लागू करने का दायित्व है
  • सक्षम कानून के अभाव में, आईसीसीपीआर International Covenant on Civil and Political Rights को भारत में अन्य कानूनों की तरह वैधानिक शक्ति प्राप्त हो सकती है परन्तु यूडीएचआर Universal Declaration of Human Rights एक घोषणा मात्र है एवम इसे कोई कानूनी शक्ति प्राप्त नहीं है
  • लेकिन कोर्ट ने आईसीसीपीआर और यूडीएचआर के प्रावधानों को अपने तर्क को मजबूत बनाने के लिए इस्तेमाल किया है और सरकार को अपने नागरिकों की ओर व अंतरराष्ट्रीय उपकरणों की ओर अपनी जिम्मेदारी महसूस करने के लिए प्रयोग किया है
  • पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने आईसीसीपीआर के अनुच्छेद 17 और यूडीएचआर के अनुच्छेद 12 का हवाला दिया इन दो अंतर्राष्ट्रीय उपकरणों के माध्यम से, अदालत ने अपने  तर्क  को मजबूत किया और सरकार को अपने नागरिकों के प्रति दायित्व के बारे में सतर्क किया

♦ प्रदीप गौतम

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