यदि कोई विवाहित महिला किसी गैर पुरुष से शारीरिक संबंध बनाए तो केवल पुरुष को ही दंड क्यों मिले। सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ इससे जुड़े कानून की समीक्षा करेगी। न्यायालय ने इस विषय को एक महत्वपूर्ण विषय बताते हुए 5 जनवरी, 2018 को 5 जजों की संविधान पीठ को सौंपा दिया। याचिकाकर्ता ने आईपीसी की धारा 497 में व्यभिचार की परिभाषा को भेदभाव पूर्ण बताया है। आईपीसी की धारा 497 में सिर्फ पुरुष को दंड दिए जाने का प्रावधान है। किसी विवाहित महिला से उसके पति की मर्जी के बिना संबंध बनाने वाले पुरुष को 5 साल तक की सजा हो सकती है लेकिन महिला पर कोई कार्यवाही नहीं होती।
याचिकाकर्ता केरल के जोसेफ शाइन के अनुसार, यह कानून 150 वर्ष पुराना है, जब महिलाओं की आर्थिक-सामाजिक स्थिति बहुत कमजोर थी, इसलिए व्यभिचार के मामले में महिला को पीड़ित की तरह माना गया था। आज की महिलाओं की स्थिति इतनी कमजोर नहीं है। यदि वो अपनी इच्छा से दूसरे पुरुष से संबंध बनाती है, तो मुकदमा सिर्फ उस पुरुष पर नहीं चलना चाहिए। ऐसे मामले में महिला को छूट दे देना समानता के अधिकार के विपरीत है।
इस दलील की सहमति में संवैधानिक पीठ ने कहा कि ‘‘आपराधिक कानून लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करता लेकिन ये धारा एक अपवाद है। इस पर विचार की जरूरत है।’’ न्यायालय ने यह भी कहा कि पति की सहमति से किसी और से संबंध बनाने पर इस धारा का लागू न होना भी यह दिखाता है कि औरत को एक संपत्ति की तरह लिया गया है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि 1971 में विधि आयोग तथा 2003 में जस्टिस मलिमथ आयोग आईपीसी 497 में बदलाव की सिफारिश कर चुके हैं परन्तु किसी सरकार ने इस कानून में कोई संशोधन नहीं किया।
न्यायालय में यह भी प्रश्न उठाया गया कि आईपीसी 497 के तहत् पति तो अपनी पत्नी के व्यभिचार की शिकायत कर सकता है परन्तु पति के ऐसे संबंधों की शिकायत पत्नी नहीं कर सकती। न्यायालय ने माना कि ये कानून कहीं पुरुष तो कहीं महिला से भेदभाव करता है। इससे पहले भी 1954, 2004, 2008 में आए निर्णयों में सर्वोच्च न्यायालय आईपीसी 497 में किसी भी तरह के बदलाव की मांग को ठुकरा चुका है तथा यह निर्णय लेने वाली संवेधानिक पीठ में तीन या चार न्यायाधीश होते थे। इसी कारण से इस बार संवैधानिक पीठ में पांच न्यायाधीशों को सम्मिलित किया गया है।