उद्यम संबंधी निकाय
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) का गठन भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1988 द्वारा किया गया। यह इसे सौंपे गए राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास, रख-रखाव एवं प्रबंधन की जिम्मेदारी संभालता है। प्राधिकरण ने फरवरी, 1995 में एक पूर्णकालिक अध्यक्ष और अन्य सदस्यों के साथ काम करना शुरू किया।
एनएचएआई का मिशन है वैश्विक मानकों के अनुरूप राष्ट्रीय राजमार्गों का प्रबंधन एवं रख-रखाव करना एवं उपयोगकर्ताओं की आशाओं को समयबद्ध एवं न्यूनतम लागत में पूरा करना जिससे आर्थिक संपन्नता एवं लोगों की गुणवत्तापरक जीवन की संवृद्धि की जा सके।
प्राधिकरण में एक अध्यक्ष होता है, पांच से अनधिक पूर्णकालिक सदस्य होते हैं और चार से अनधिक अंशकालिक सदस्य होते हैं।
एनएचएआई को राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (एनएचडीपी) के क्रियान्वयन हेतु अधिकृत किया गया है जो अबाधित परिवहन प्रवाह के साथ विश्वस्तरीय सड़क निर्माण का अभी तक का भारत का सबसे बड़ा राजमार्ग प्रोजेक्ट है। भारत सरकार ने एनएचडीपी के विभिन्न चरणों के माध्यम से राष्ट्रीय राजमार्गों के उन्नयन एवं सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
एनएचएआई के कृत्य इस प्रकार हैं
* इसे सौंपे गए एवं इसमें निहित राजमार्गों का सर्वेक्षण, विकास, रख-रखाव एवं प्रबंधन करना;
* इसे सौंपे गए एवं इसमें निहित राजमार्गों के नजदीक या इन पर कार्यालय या वर्कशॉप्स निर्मित करना और होटल, मोटल, रेस्टोरेंट एवं विश्राम गृह बनाना एवं उनका प्रबंधन करना;
* अपने कर्मचारियों के लिए अवासीय भवन एवं टाउनशिप बनाना;
* राजमार्गों से सम्बद्ध मामलों पर केंद्र सरकार को सलाह देना;
* सेवाओं और प्रदत्त लाभों के लिए केंद्र सरकार की तरफ से शुल्कों का संग्रह करना;
* दिए गए कार्यों को दक्षतापूर्वक करने के लिए कम्पनी अधिनियम, 1956 के तहत् एक या एक से अधिक कम्पनी बनाना।
* राजमार्गों के विकास हेतु योजना के निर्माण एवं कार्यान्वयन में पूर्व निर्धारित सहमति एवं सेवा शर्तों पर राज्य सरकार को मदद करना;
* इसको प्रदत्त किसी कार्य को करने के लिए शक्तियों का प्रयोग करना और सभी जरूरी एवं महत्वपूर्ण कदम उठाना।
रेलवे सुरक्षा आयोग
रेलवे सुरक्षा आयोग एक उच्चस्तरीय संविधिक निकाय है जो रेलवे अधिनियम, 1989 के अंतर्गत नई रेलवे लाइनों की जांच, खुली लाइनों की जांच, गंभीर रेल दुर्घटनाओं की जांच, और कुछ अन्य खास कृत्य जो रेलवे सुरक्षा से सम्बद्ध हैं, करता है।
लखनऊ में स्थित रेलवे सुरक्षा मुख्य आयुक्त, आयोग का मुखिया होता है, जो रेलवे सुरक्षा से जुड़े सभी मामलों पर केंद्र सरकार के प्रधान तकनीकी सलाहकार के तौर पर भी कार्य करता है। रेलवे सुरक्षा मुख्य आयुक्त (सीसीआरएस) के प्रशासनिक नियंत्राणाधीन रहते हुए 9 रेलवे सुरक्षा आयुक्त (सीआरएस) होते हैं, जिसमें से प्रत्येक 16 जोनल (रेल) में से एक या अधिक पर अधिकार क्षेत्रा रखता है। इसके अतिरिक्त मेट्रो रेल, कोलकाता; डीएमआरसी, दिल्ली; एमआरटीपी, चेन्नई और कोंकण रेलवे भी इनके अधिकार क्षेत्रा में आती हैं। जब आवश्यकता होती है तब मुख्यालय, लखनऊ में सीसीआरसी की सहायता हेतु 5 रेलवे सुरक्षा उपायुक्त नियुक्त किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, सिग्नल एवं दूरसंचार से सम्बद्ध मामलों में रेलवे सुरक्षा आयुक्त की मदद के लिए मुम्बई एवं कोलकाता, प्रत्येक में 2 फील्ड उपायुक्त होते हैं।
रेलवे सुरक्षा आयोग रेलवे अधिनियम, 1989, में उल्लिखित रेल यात्रा एवं संचालन से सम्बद्ध सुरक्षा हेतु कार्य करने वाली संविधिक संस्था है, जो अन्वेषणीय, जांच करने वाली और सलाहकारी प्रकृति की है। आयोग रेलवे अधिनियम एवं समय-समय पर जारी कार्यकारी निर्देशों के तहत् बनाए गए नियमों से दुर्घटना मामलों में संविधिक जांच करता है। आयोग का बेहद महत्वपूर्ण कार्य है यह सुनिश्चित करना कि यात्राी परिवहन के लिए खुली नई लाइन रेल मंत्रालय द्वारा जारी मानकों एवं नियमों के अनुसार है या नहीं और नई लाइन यात्राी परिवहन के लिए सभी तरह से सुरक्षित है।
रेलवे दावा न्यायाधिकरण
रेलवे दावा ट्रिब्यूनल अधिनियम, 1987 रेलवे प्रशासन के खिलाफ नुकसान, विध्वंस, हानि, या पशुओं या सामान न पहुंचा पाने या किराया या मालभाड़ा लौटाने या यात्रियों की मृत्यु या चोट की क्षतिपूर्ति करने (रेलवे दुर्घटना की स्थिति में) या रेलवे से संबंधित अन्य मामलों के लिए एक रेलवे दावा ट्रिब्यूनल के गठन का प्रावधान करता है। रेलवे दावा ट्रिब्यूनल में एक अध्यक्ष, चार उपाध्यक्ष और न्यायिक सदस्यों और तकनीकी सदस्यों की ऐसी संख्या जो केंद्र सरकार उचित समझे, होंगे।
अपने कृत्यों का निर्वहन करने के लिए ट्रिब्यूनल को निम्न मामलों में दीवानी न्यायालय के समान शक्तियां प्राप्त होंगी
* किसी व्यक्ति को ट्रिब्यूनल के समक्ष उपस्थित होने का सम्मन भेजना और शपथ देकर उसका मूल्यांकन करना;
* दस्तावेजों की खोज एवं प्रस्तुति की मांग करना;
* शपथपत्रा पर प्रमाण प्राप्त करना;
* साक्ष्यों या दस्तावेजों के परीक्षण हेतु समिति गठित करना;
* स्वयं के निर्णयों की समीक्षा करना;
* डिफॉल्ट के लिए आवेदन रद्द करना;
* डिफॉल्ट (अयोग्य) के लिए किसी आवेदन को रद्द करने के आदेश को एक तरफ रखना;
* अन्य कोई मामला जो अनुशंसित किया गया हो।
विमानपत्तन आर्थिक विनियामक प्राधिकरण अपीलीय ट्रिब्यूनल
विमानपत्तन आर्थिक विनियामक प्राधिकरण अपीलीय ट्रिब्यूनल (एईआरएएटी) की स्थापना विमानपत्तन आर्थिक विनियामक प्राधिकरण अधिनियम, 2008 के अंतर्गत दो या अधिक सेवा प्रदाताओं के बीच किसी विवाद या सेवा प्रदाताओं और उपभोक्ता के समूह के बीच किसी विवाद के अधिनिर्णयन के लिए और विमानपत्तन आर्थिक विनियामक प्राधिकरण के किसी निर्देश, निर्णय या आदेश के विरुद्ध किसी अपील को सुनने एवं इसका निपटान करने के लिए की गई।
अपीलीय ट्रिब्यूनल दोनों पक्षों को सुनने का अवसर देने के पश्चात् ऐसा आदेश दे सकता है जो वह सही समझे। कोई व्यक्ति जो जानबूझकर अपीलीय ट्रिब्यूनल के आदेश की अनुपालना नहीं करता है उस पर जुर्माना आरोपित किया जाएगा जो 1 लाख रुपए तक हो सकता है और दूसरी एवं निरंतर अपराध की स्थिति में यह दो लाख रुपए तक हो सकता है और निरंतर उल्लंघन की स्थिति में इसमें अतिरिक्त जुर्माना जो दो लाख रुपए प्रतिदिन तक का हो सकता है। ट्रिब्यूनल के आदेश के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील की जा सकती है। किसी भी न्यायालय को किसी भी मामले एवं प्रक्रिया को देखने का अधिकार नहीं होगा जिसे अधिनियम के अंतर्गत देखने की अधिकारिता अपीलीय ट्रिब्यूनल की होगी।
अपीलीय ट्रिब्यूनल में एक अध्यक्ष एवं दो से अनधिक सदस्य होंगे जिनकी नियुक्ति केद्र सरकार द्वारा की जाएगी।
विमानपत्तन आर्थिक विनियामक प्राधिकरण
विमानपत्तन आर्थिक विनियामक प्राधिकरण (एईआरए) की स्थापना मई, 2009 में भारत सरकार द्वारा की गई। प्राधिकरण में एक अध्यक्ष एवं दो अन्य सदस्य होते हैं जिनकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है। प्राधिकरण के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा वैमानिकी, कानून, अर्थव्यवस्था, वाणिज्य या उपभोक्ता मामलों का ज्ञान एवं पेशेवर अनुभव रखने वाले योग्य लोगों में से की जाएगी।
भारतीय विमानपत्तन आर्थिक विनियामक प्राधिकरण अधिनियम, 2008 में उल्लिखित उपबंधों के अनुरूप एईआरए के निम्न संविधिक कृत्य हैं
(क) वैमानिकी सेवाओं के शुल्कों के निर्धारण में ध्यान रखा जाता है,
(i) पूंजीगत व्यय को उठाना और विमानपत्तन सुविधाओं के सुधार में समयबद्ध निवेश करना
(ii) प्रदान की गई सेवा की गुणवत्ता एवं अन्य सम्बद्ध कारक,
(iii) कार्यक्षमता के सुधार की लागत,
(iv) बड़े एवं प्रमुख विमानपत्तनों का मितव्ययी एवं सक्षम संचालन,
(v) वैमानिकी सेवाओं के अतिरिक्त सेवाओं से प्राप्त राजस्व
(vi) केंद्र सरकार द्वारा किसी समझौते, सहमति या एमओयू में किसी प्रकार की रियायत,
(vii) अन्य कोई कारक जो इस अधिनियम के उद्देश्यों के लिए प्रासंगिक हो सकता है।
(ख) प्रमुख विमानपत्तनों के संबंध में विकास शुल्क की राशि का निर्धारण करना।
(ग) विमान नियम, 1937 के नियम 88 के अंतर्गत आरोपित यात्राी सेवा शुल्क की राशि का निर्धारण करना
(घ) सेवा गुणवत्ता, निरंतरता एवं विश्वसनीयता से सम्बद्ध तय निष्पादन मानकों, जैसा कि केंद्र सरकार या अन्य प्राधिकृत प्राधिकरण द्वारा विशेषित किया गया हो, की निगरानी करना।
(ङ) उपबंध ;कद्ध के तहत् शुल्कों के निर्धारण हेतु ऐसी सूचना मांगना जो आवश्यक हो।
(च) शुल्क से सम्बद्ध अन्य ऐसे कृत्य, जो केंद्र सरकार द्वारा इसे सौंपे गए हों या इस अधिनियम के प्रावधानों की पूर्ति के लिए अत्यावश्यक हों।
दूरसंचार विवाद निपटान एवं अपीलीय ट्रिब्यूनल
अध्यादेश द्वारा ट्राई अधिनियम, 1997 का संशोधन किया गया, जो 24 जनवरी, 2000 से प्रभावी हुआ। इसके द्वारा दूरसंचार विवाद निपटान एवं अपीलीय ट्रिब्यूनल (टीडीएसएटी) को स्थापित किया गया, जिसने ट्राई से अधिनिर्णयन एवं विवाद निपटान कृत्यों को हस्तगत कर लिया। टीडीएसएटी की स्थापना लाइसेंस प्रदानकर्ता एवं लाइसेंस प्राप्तकर्ता के बीच किसी विवाद, दो या दो से अधिक सेवा प्रदाताओं के मध्य, सेवा प्रदाता और उपभोक्ताओं के समूह के मध्य विवाद का निपटान करने और ट्राई के किसी आदेश, निर्णय या निर्देश के खिलाफ अपील को सुनने एवं उसका निपटान करने के लिए किया गया।
अपीलीय ट्रिब्यूनल में एक अध्यक्ष एवं दो से अधिक सदस्यों की नियुक्ति, अधिसूचना द्वारा केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।
अपीलीय ट्रिब्यूनल सिविल आचार संहिता 1908 द्वारा निर्धारित प्रक्रिया से बंधा नहीं है, लेकिन प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों से निर्देशित होता है और इस अधिनियम के अन्य प्रावधानों के विषयगत है, अपीलीय ट्रिब्यूनल को स्वयं की प्रक्रियाओं को विनियमित करने की शक्ति होगी। ट्रिब्यूनल के पास, उसके कृत्यों के निर्वहन के लिए, सिविल आचार संहिता, 1908 के तहत् दीवानी न्यायालय में निहित शक्तियों के समान शक्तियां होंगी, जब वह निम्न मामलों से संबंधित प्रकरणों पर विचार करता हैµ
* किसी व्यक्ति को उसके समक्ष प्रस्तुत होने का सम्मन भेजना और बाध्य करना;
* किसी दस्तावेज की प्रस्तुति की मांग करना;
* शपथपत्रा पर साक्ष्य प्राप्त करना;
* भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 123 और 124 के प्रावधानों के विषयाधीन रहते हुए, किसी कार्यालय से किसी सार्वजनिक रिकॉर्ड, या दस्तावेज या ऐसे रिकॉर्ड या दस्तावेज की छायाप्रति की आवश्यकता;
* साक्ष्य या दस्तावेज के परीक्षण हेतु आयोग गठित करना;
* स्वयं के निर्णयों की समीक्षा करना;
* कोई अन्य मामला, जो इसे संदर्भित किया गया हो।
भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई)
भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) की स्थापना भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण अधिनियम, 1997 द्वारा दूरसंचार सेवाओं को विनियमित करने हेतु 20 फरवरी, 1997 को की गई। ट्राई का मिशन देश में दूरसंचार के विकास के लिए दशाओं को इस प्रकार निर्मित करना है जिससे भारत उदीयमान वैश्विक सूचना समाज में एक अग्रणी भूमिका निभाने में सक्षम हो सकेगा। स्वच्छ प्रतिस्पर्द्धा सुसाध्य एवं सभी को बराबरी का अवसर देने के लिए निष्पक्ष एवं पारदर्शी नीति का माहौल प्रदान करना ट्राई का मुख्य उद्देश्य है।
प्राधिकरण में एक अध्यक्ष एवं न्यूनतम दो और अधिकतम छह सदस्य होते हैं, तथा इनकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है। अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति होगा जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश है या रहा हो या वह उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश हो या रहा हो। सदस्य ऐसा व्यक्ति होगा जिसे दूरसंचार, उद्योग, वित्त, लेखांकन, विधि, प्रबंधन एवं उपभोक्ता मामलों के क्षेत्रा में से किसी में विशेष ज्ञान एवं पेशेवर अनुभव है।
ट्राई के कृत्य एवं दायित्वः
* नए सेवा प्रदाताओं हेतु समय एवं जरूरतों की अनुशंसा करना।
* एक सेवा प्रदाता के लिए लाइसेंस की सेवा शर्तों की अनुशंसा करना।
* विभिन्न सेवा प्रदाताओं के बीच तकनीकी सुसंगतता एवं प्रभावी अंतर्संपर्क सुनिश्चित करना।
* सेवा प्रदाताओं को दूरसंचार सेवाओं के प्रदायन से प्राप्त राजस्व का सेवा प्रदाताओं के बीच हिस्सेदारी के प्रबंध का विनियमन करना।
* लाइसेंस हेतु सेवा शर्तों के अनुपालन को सुनिश्चित करना।
* विभिन्न सेवा प्रदाताओं के मध्य दूरसंचार की स्थानीय एवं लंबी दूरी सर्किटों की समयावधि सुनिश्चित करना।
* दूरसंचार सेवाओं के प्रचालन में प्रतिस्पर्द्धा को सुसाध्य बनाना और कार्यदक्षता को बढ़ावा देना ताकि इन सेवाओं में संवृद्धि हासिल की जा सके।
* दूरसंचार सेवा के उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना।
* सेवा की गुणवत्ता की निगरानी करना और सेवा प्रदाताओं द्वारा मुहैया कराई गई ऐसी सेवाओं का आवधिक सर्वेक्षण करना।
* नेटवर्क में प्रयुक्त उपकरण की जांच करना और सेवा प्रदाताओं द्वारा किस प्रकार के उपकरणों के प्रयोग करने की अनुशंसा करना।
* सेवा प्रदाताओं के मध्य विवादों का निपटारा करना।
* विनियमों द्वारा निर्धारित, इन सेवाओं के संबंध में, दरों पर शुल्क एवं अन्य भारों का आरोपण करना।
* सार्वभौमिक सेवा दायित्वों के प्रभावी अनुपालन को सुनिश्चित करना; और
* ऐसे अन्य कार्य करना, जिसमें प्रशासनिक एवं वित्तीय कार्य भी शामिल हैं, जो केंद्र सरकार द्वारा उसे सौंपे गए हैं।
नागर विमानन महानिदेशालय
नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधीन एक भारतीय सरकारी नियामक संगठन है। भारत में उड्डयन के क्षेत्रा में डीजीसीए नागरिक उड़ान नियमों को लागू करने वाला एक प्रमुख निकाय है। यह महानिदेशालय विमानन दुर्घटनाओं एवं घटनाओं की जांच करता है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। विनियमन एवं पूर्व गतिशील सुरक्षा निगरानी तंत्रा द्वारा सुरक्षित एवं दक्ष वायु परिवहन को प्रोत्साहित करने का उद्यम करना निदेशालय का मिशन है।
महानिदेशालय के कृत्य एवं दायित्वः स विभिन्न प्रकार के विमान को प्रमाणित करना।
* नागरिक विमानों का पंजीकरण करना।
* हल्के विमानों, ग्लाइडरों और एयरोड्रम की निगरानी करना।
* हवाई अड्डों और विमान वाहकों को लाइसेंस जारी करना।
* विमान अधिनियम, 1937 के प्रावधानों के अंतर्गत देश से, देश को और देश के भीतर विमान यातायात सेवाओं का नियमन करना।
* विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय उड़ान सेवाओं सहित विमान परिवहन से संबद्ध मामलों पर सरकार को सलाह देना।
* विमान चालकों और विमान रखरखाव इंजीनियरों को लाइसेंस जारी करना, और विमान कर्मी मानकों की निगरानी करना।
* विमान अधिनियम 1934 और विमानन अधिनियम 1937 तथा संबंधित अन्य कानूनों में संशोधन करना ताकि शिकागो संधि और उसके अनुलग्नकों के प्रावधानों को तथा विमानन संबंधी अन्य अंतरराष्ट्रीय समझौतों को देश में लागू किया जा सके।
* भारत में नागरिक विमानों के पंजीकरण के लिए उड़ान योग्य आवश्यकताओं को देखना और उपयुक्त विमानों को प्रमाणपत्रा जारी करना।
* उड़ान ग्लाइडिंग क्लबों की प्रशिक्षण गतिविधियों पर निगरानी रखना।
* उड़ान के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं की जांच और सरकार द्वारा नियुक्त न्यायालय, जांच समितियों को तकनीकी सहायता उपलब्ध कराना।
* अंतरराष्ट्रीय नागरिक विमानन संगठनों से संबंद्ध कार्यों में समन्वय स्थापित करना।
बीमा विनियामक विकास प्राधिकरण
वर्ष 1999 में, बीमा विनियामक विकास प्राधिकरण (इरडा) का बीमा उद्योग के विकास एवं विनियमन हेतु एक स्वायत्त निकाय के रूप में गठन किया गया। इरडा अधिनियम, 1999 के तहत् अप्रैल, 2000 में इरडा को एक संविधिक निकाय के तौर पर शामिल किया गया। इरडा के मुख्य उद्देश्यों में प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करना ताकि उपभोक्ता की पसंद में बढ़ोतरी और प्रीमियम में कमी द्वारा उपभोक्ता की संतुष्टि में वृद्धि की जा सके, जबकि बीमा बाजार की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
प्राधिकरण में दस सदस्यों का एक समूह होता है, इन सभी को केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है, जिसमें (क) एक अध्यक्ष; (ख) पांच पूर्णकालिक सदस्य; एवं (ग) चार अंशकालिक सदस्य होते हैं।
पॉलिसी धारकों के हितों की रक्षा करना प्राधिकरण का मिशन है। साथ ही बीमा क्षेत्रा में तीव्र एवं संयमित वृद्धि लाना, आम आदमी के लाभ हित में बढ़ोतरी करना, और अर्थव्यवस्था की संवृद्धि में वृद्धि हेतु दीर्घावधिक वित्त मुहैया कराना; बीमा क्षेत्रा को नियमित करने वाले नियामकों के समन्वय के उच्च मानकों, वित्तीय सुघटता, स्वच्छ व्यवहार एवं सक्षमता को प्रोत्साहित, निर्धारित, निगरानी एवं लागू करना; वास्तविक दावों के तीव्र निपटान को सुनिश्चित करना, बीमा घोटालों और अन्य कुप्रथाओं को रोकना और प्रभावी शिकायत निपटान तंत्रा के सुपुर्द करना; वित्तीय बाजार में बीमा संव्यवहारों में ईमानदारी, पारदर्शिता एवं व्यवस्थित व्यवहार को बढ़ावा देना और बाजार निर्धारकों के बीच वित्तीय सुघटता के उच्च मानदंड लागू करने के लिए एक विश्वसनीय प्रबंधन सूचना तंत्रा निर्मित करना; जहां ऐसे मानक अपर्याप्त या अप्रभावी हैं, वहां उचित कार्रवाई करना।
इरडा के कृत्य एवं दायित्वः इरडा अधिनियम, 1993 इरडा के कृत्यों, शक्तियों एवं दायित्वों का निर्धारण करता है। प्राधिकरण का दायित्व बीमा व्यवसाय एवं पुनर्बीमा व्यवसाय की सुव्यवस्थित वृद्धि की सुनिश्चितता, प्रोत्साहन एवं विनियमन करना है। प्राधिकरण के कृत्यों एवं दायित्वों में शामिल हैंः
* आवेदक को पंजीकरण के पुनर्नवीकरण, संशोधन, हटाने, निलम्बित या रद्द करने का दस्तावेज जारी करना;
* बीमा कंपनियों की लेखा परीक्षक रिपोर्ट और वित्तीय विवरण तैयार करना;
* बीमा मध्यवर्तियों को विनियमित करना;
* पुनर्बीमा संबंधी दिशा-निर्देश जारी करना;
* पॉलिसी धारकों के हितों का संवर्द्धन करना;
* ऋणशोधन क्षमता की सीमा के प्रबंधन का विनियमन करना;
* बीमाकर्ता और मध्यवर्तियों या बीमा मध्यवर्तियों के बीच विवादों का अधिनिर्णयन करना;
* ग्रामीण या सामाजिक क्षेत्रा में बीमाधारकों का संज्ञान लेकर जीवन बीमा व्यवसाय और सामान्य बीमा व्यवसाय के प्रतिशत को निर्धारित करना।
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत, राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान (एनसीडीआरसी) आयोग का गठन वर्ष 1988 में किया गया। इसका अध्यक्ष भारत के उच्चतम न्यायालय का कार्यकारी या सेवानिवृत्त न्यायाधीश होता है। इसमें 10 सदस्य होते हैं।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 एक कल्याणकारी सामाजिक विधान है जो उपभोक्ताओं के अधिकारों को निर्धारित करता है और इन्हें अपना प्रोत्साहन एवं संरक्षण प्रदान करता है। यह भारत में इस प्रकार का प्रथम एवं एकमात्रा अधिनियम है, जिसने आम उपभोक्ता को कम खर्चीला एवं शिकायत का तीव्र निपटान हेतु सक्षम बनाया।
सस्ता, तीव्र एवं संक्षिप्त उपभोक्ता शिकायत निपटान हेतु प्रत्येक जिले, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर अर्द्ध-न्यायिक निकाय गठित किए गए हैं जिन्हें क्रमशः जिला फोरम, राज्य उपभोक्ता शिकायत निपटान आयोग एवं राष्ट्रीय उपभोक्ता शिकायत निपटान आयोग कहा जाता है। मौजूदा समय में 629 जिला फोरम एवं 35 राज्य आयोग हैं। राष्ट्रीय स्तर पर एक एनसीडीआरसी है। इसका कार्यालय नई दिल्ली में है।
उपभोक्ता फोरम की प्रक्रियाएं प्रकृति में संक्षिप्त होती हैं। उपभोक्ता को जल्द से जल्द आराम दिलाने का भरसक प्रयास किया जाता है। यदि कोई उपभोक्ता जिला फोरम के निर्णय से संतुष्ट नहीं है, तो वह राज्य आयोग में अपील कर सकता है। राज्य आयोग के फैसले के विरुद्ध उपभोक्ता राष्ट्रीय आयोग में जा सकता है।
राष्ट्रीय आयोग को सभी राज्य आयोगों पर प्रशासनिक नियंत्राण की शक्तियां प्रदान की गई हैं।
राष्ट्रीय आयोग को निम्न के संबंध में निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई हैः
* मामले की सुनवाई में एक समान प्रक्रिया अपनाने;
* एक पार्टी द्वारा दूसरी पार्टी को सौंपे जाने वाले दस्तावेज प्रस्तुत कराने;
* दस्तावेजों को तीव्र अनुमति; और
* आमतौर पर राज्य आयोगों एवं जिला फोरमों के कार्यकरण की निगरानी यह सुनिश्चित करने के लिए करना कि आयोग उनकी अर्द्ध-न्यायिक स्वतंत्राता में बिना किसी हस्तक्षेप के अधिनियम के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को भली-भांति पूरा करे।
भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण
भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) का गठन संसद के एक अधिनियम द्वारा किया गया तथा यह तत्कालीन राष्ट्रीय विमानपत्तन प्राधिकरण तथा भारतीय अंतरराष्ट्रीय विमानपत्तन प्राधिकरण के विलय के माध्यम से 1 अप्रैल, 1995 को अस्तित्व में आया। इस विलय से एक एकल संगठन अस्तित्व में आया जिसे देश में जमीन पर एवं वायु क्षेत्रा में भी नागर विमानन अवसंरचना के सृजन, उन्नयन, अनुरक्षण एवं प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपी गई।
भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण 125 विमानपत्तनों का प्रबंधन करता है जिसमें 11 अंतरराष्ट्रीय विमानपत्तन, 8 सीमा शुल्क विमानपत्तन, 81 घरेलू विमानपत्तन तथा रक्षा वायु क्षेत्रों में 27 सिविल एंक्लेव शामिल हैं। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण 2.8 मिलियन वर्ग नॉटिकल मील के हवाई अंतरिक्ष में हवाई नेविगेशन की सुविधाएं उपलब्ध कराता है।
भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के कार्यः भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के कार्य इस प्रकार हैंः
- अंतरराष्ट्रीय एवं घरेलू विमानपत्तनों का डिजाइन, विकास, प्रचालन एवं अनुरक्षण।
- आईसीएओ द्वारा यथा स्वीकृत देश की भौगोलिक सीमाओं के बाद भारतीय वायु अंतरिक्ष का नियंत्राण एवं प्रबंधन।
- यात्राी टर्मिनलों का निर्माण, सुधार एवं प्रबंधन।
- अंतरराष्ट्रीय एवं घरेलू विमानपत्तनों पर कार्गो टर्मिनलों का विकास एवं प्रबंधन
- विमानपत्तनों के यात्राी टर्मिनलों पर यात्राी सुविधाओं एवं सूचना प्रणाली का प्रावधान।
- प्रचालन क्षेत्रा अर्थात् रनवे, एप्रन, टैक्सी वे आदि का विस्तार एवं सुदृढ़ीकरण।
- विजुअल एड्स का प्रावधान।
- संचार एवं नेविगेशन एड्स अर्थात् आईएलएस, डीवीओआर, डीएमई, रडार आदि का प्रावधान।
एएआई की वर्तमान स्थिति एवं निष्पादनः सुरक्षित विमान प्रचालन हेतु भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण सभी विमानपत्तनों एवं 25 अन्य स्थानों पर जमीनी अधिष्ठापनों के साथ संपूर्ण भारतीय वायु क्षेत्रा एवं समीपवर्ती महासागरीय क्षेत्रों में वायु ट्रैफिक प्रबंधन सेवाएं (एटीएमएस) प्रदान करता है।
इलाहाबाद, अमृतसर, कालीकट, गुवाहाटी, जयपुर, त्रिवेंद्रम, कोलकाता एवं चेन्नई के विमानपत्तन, जो आज अंतरराष्ट्रीय विमानपत्तन के रूप में स्थापित हैं, विदेशी अंतरराष्ट्रीय एयरलाइनों द्वारा भी प्रचालन के लिए खुले हैं। कोयबंटूर, तिरुचिरापल्ली, वाराणसी एवं गया के हवाई अड्डों से अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के अलावा राष्ट्रीय ध्वज वाहक भी प्रचालन करते हैं। केवल इतना ही नहीं अपितु आज आगरा, कोयंबटूर, जयपुर, लखनऊ, पटना आदि के विमानपत्तनों तक टूरिस्ट चार्टर भी जाते हैं।
भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने मुम्बई, दिल्ली, हैदरबाद, बंगलुरू एवं नागपुर के विमानपत्तनों के उन्नयन के लिए तथा विश्वस्तरीय मानकों से बराबरी करने के लिए एक संयुक्त उद्यम भी स्थापित किया है।
भारतीय विमानपत्त प्राधिकरण द्वारा कोलकाता एवं चेन्नई के वायु ट्रैफिक नियंत्राण केंद्रों पर देशज प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके ऑटोमेटिक डिपेंडेंस सर्विलांस सिस्टम (एडीएसएस) के सफल कार्यान्वयन ने भारत को दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्रा में इस उन्नत प्रौद्योगिकी का प्रयोग करने वाला पहला देश होने का गौरव प्रदान किया जिससे उपग्रह आधारित संचार प्रणाली का प्रयोग करके महासागरीय क्षेत्रों के ऊपर वायु ट्रैफिक का प्रभावी नियंत्राण संभव हुआ है। उपग्रह संचार लिंक के साथ रिमोट कंट्रोल्ड वीएचएफ कवरेज के प्रयोग ने हमारे एटीएमएस को और मजबूती प्रदान की है। वी-सैट अधिष्ठापनों द्वारा 80 स्थानों को जोड़ने से बड़े पैमाने पर वायु ट्रैफिक प्रबंधन में वृद्धि होगी और बदले में एयरक्राफ्ट के प्रचालन की सुरक्षा वृद्धि होगी। इसके अलावा, हमारे बृहत् एयरपोर्ट नेटवर्क पर प्रशासनिक एवं प्रचालनात्मक नियंत्राण संभव होगा। मुम्बई, दिल्ली एवं इलाहाबाद के विमानपत्तनों पर निष्पादन आधारित नेविगेशन (पीएनबी) प्रक्रिया पहले ही कार्यान्वित की जा चुकी है।
भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने भारतीय अंतरिक्ष एवं अनुसंधान केंद्र (इसरो) के साथ प्रौद्योगिकीय सहयोग से गगन परियोजना शुरू की है जहां नेविगेशन के लिए उपग्रह आधारित प्रणाली का प्रयोग किया जाएगा। इस प्रकार जीपीएस से प्राप्त नेविगेशन के संकेतों को हवाई जहाजों की नेविगेशन संबंधी आवश्यकता को पूरा करने के लिए उन्नत किया जाएगा। प्रौद्योगिकी प्रदर्शन प्रणाली का पहला चरण फरवरी 2008 में पहले ही सफलतापूर्वक पूरा हो गया है। प्रचालनात्मक चरण में इस प्रणाली को स्तरोन्नत करने के लिए विकास टीम को सक्षम बनाया गया है।
भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने दिल्ली एवं मुम्बई के विमानपत्तनों पर ग्राउंड बेस्ड ऑगमेंटेशन सिस्टम (जीबीएएस) उपलब्ध कराने की भी योजना बनाई है। यह जीबीएएस उपकरण हवाई जहाजों को श्रेणी-2 (वक्र एप्रोच) लैंडिंग सिग्नल उपलब्ध कराने और इस प्रकार आगे चलकर लैंडिंग सिस्टम के विद्यमान उपकरण को प्रतिस्थापित करने में समर्थ होगा, जिसकी रनवे के प्रत्येक छोर पर जरूरत होती है।
ग्राहकों की अपेक्षाएं पर अधिक बल के साथ भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के प्रयास को उस स्वतंत्रा एजेंसी से उत्साहवर्धक प्रत्युत्तर मिला है जिसने 30 व्यस्त विमानपत्तनों पर ग्राहक संतुष्टि सर्वेक्षण संचालित किया है। इन सर्वेक्षणों ने हमें विमानपत्तनों के प्रयोक्ताओं द्वारा सुझाए गए पहलुओं पर सुधार करने में समर्थ बनाया है। विमानपत्तनों पर हमारे ‘व्यवसाय उत्तर पत्रा’ के लिए रिसेप्टुकल लोकप्रिय हुए हैं; इन प्रत्युत्तरों ने हमें विमानपत्तनों के प्रयोक्ताओं की बदलती महत्वाकांक्षाओं को समझने में समर्थ बनाया है। सहòाब्दि के पहले वर्ष के दौरान, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण अपने प्रचालन को अधिक पारदर्शी बनाने तथा अधुनातन सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करके ग्राहकों को तत्काल सूचना उपलब्ध कराने के लिए प्रयास कर रहा है।
विशिष्ट प्रशिक्षण, कर्मचारी प्रत्युत्तर में सुधार तथा व्यावसायिक कौशल के उन्नयन पर फोकस स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण की चार प्रशिक्षण स्थापनाओं अर्थात् नागरिक विमानन प्रशिक्षण कॉलेज (सीएटीसी), इलाहाबाद; राष्ट्रीय विमानन प्रबंधन एवं अनुसंधान संस्थान (एनआईएएमएआर), दिल्ली और कोलकाता स्थित अग्नि प्रशिक्षण केंद्र (एफटीसी) के बारे में ऐसी अपेक्षा है कि वे पहले से अधिक व्यस्त रहेंगे।
भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने सीएटीसी, इलाहाबाद एवं हैदराबाद एयरोपोर्ट पर प्रशिक्षण सुविधाओं को स्तरोन्नत करने की भी पहल की है। हाल ही में सीएटीसी पर एयरपोर्ट विजुअल सिमुलेटर (एवीएस) उपलब्ध कराया गया है तथा सीएटीसी, इलाहाबाद एवं हैदराबाद एयरपोर्ट को गैर-रडार प्रक्रियात्मक एटीसी सिमुलेटर उपकरण की आपूर्ति की जा रही है।
भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण की एक समर्पित उड़ान निरीक्षण यूनिट (एफआईयू) है तथा इसके बेड़े में तीन हवाई जहाज हैं जो निरीक्षण में समर्थ अधुनातन एवं पूर्णतः स्वचालित उड़ान निरीक्षण प्रणाली से सुसज्जित हैं।
खादी और ग्रामोद्योग आयोग
खादी और ग्रामोद्योग आयोग संसद के एक अधिनियम, 1956 के 61वें तथा 1987 के अधिनियम 12 एवं 2006 के अधिनियम 10 के द्वारा सृजित विधिविहित संगठन है और अप्रैल 1957 में स्थापित इस संगठन ने अखिल भारतीय खादी और ग्रामोद्योग मंडल से कार्यभार हाथ में लिया। यह संगठन सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय तथा भारत सरकार के प्रशासनिक नियंत्राण में कार्यरत है।
आयोग में एक अध्यक्ष, वित्तीय सलाहकार, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, मुख्य सतर्कता अधिकारी है जिनकी नियुक्ति केंद्र सरकार करती है।
उद्देश्यः आयोग ने मुख्य रूप से निम्नलिखित व्यापक उद्देश्य निर्धारित किए हैंः
* रोजगार प्रदान करने का सामाजिक उद्देश्य।
* बिक्री योग्य वस्तुओं का उत्पादन करने का आर्थिक उद्देश्य; और
* जनता में आत्मनिर्भरता एवं सुदृढ़ ग्राम स्वराज की भावना पैदा करने का व्यापक उद्देश्य।
कार्यः आयोग के प्रमुख कार्य एवं उत्तरदायित्व निम्नलिखित हैंः
* ग्रामीण विकास में लगे अन्य अभिकरणों से समन्वय स्थापित कर ग्रामीण क्षेत्रों में खादी और अन्य ग्रामोद्योग के विकास के लिए कार्यक्रमों की योजना बनाते हुए इसे संवर्द्धित, संगठित तथा कार्यान्वित करना।
* खादी और ग्रामोद्योग में लगे कारीगरों के लिए प्रशिक्षण का आयोजन तथा उनमें सहयोगात्मक प्रयास की भावना उत्पन्न करना।
* उत्पादकों की आपूर्ति हेतु कच्चा माल एवं औजारों के संग्रह को बढ़ाना।
* अनिर्मित माल के रूप में कच्चा माल के प्रशोधन हेतु सामान्य सेवा सुविधा का सृजन; तथा
* खादी और ग्रामोद्योगी उत्पादों के विपणन हेतु सुविधा का प्रावधान करना।
* खादी और/अथवा ग्रामोद्योगी उत्पाद अथवा हस्तकलाओं की बिक्री एवं विपणन की प्रोन्नति हेतु आयोग जहां भी संभव एवं आवश्यक हो, स्थापित विपणन अभिकरणों से संपर्क कर सकता है।
* उत्पादकता बढ़ाने, श्रम को कम करने एवं उनकी स्पर्द्धात्मक क्षमता बढ़ाने एवं ऐसे अनुसंधान से प्राप्त प्रमुख परिणामों के प्रचार-प्रसार की व्यवस्था करने की दृष्टि से गैर-परंपरागत ऊर्जा एवं विद्युत ऊर्जा के उपयोग के साथ-साथ खादी और ग्रामोद्योगी क्षेत्रा में उपयोग लायी जा रही उत्पादन तकनीकी एवं औजारों में अनुसंधान को प्रोत्साहित एवं संवर्द्धित करने तथा इससे संबंधित समस्याओं के अध्ययन की सुविधा प्रदान करने का उत्तरदायित्व आयोग पर है।
* आयोग खादी और ग्रामोद्योगों के विकास एवं कार्यान्वयन हेतु संस्थाओं तथा व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है तथा डिजाइन की आपूर्ति, प्रोटोटाइप तथा अन्य तकनीकी सूचना के माध्यम से उनका मार्गदर्शन करता है।
* खादी और ग्रामोद्योग की गतिविधियों को क्रियान्वित करने में आयोग उत्पादों की वास्तविकता एवं गुणवत्ता मानक तथा मानक के अनुरूप उत्पादों को सुनिश्चित करता है।
* आयोग खादी और ग्रामोद्योगों के विकास हेतु प्रमुख परियोजनाओं के अनुसंधान अथवा तैयार करने के अलावा, संबंधित खादी और ग्रामोद्योगी समस्याओं का प्रत्यक्ष रूप से अथवा अन्य अभिकरणों के माध्यम से अध्ययन करता है।
आयोग अपनी गतिविधियों से संबंधित किसी अन्य अनुषांगिक मामले को संचालित करने के अलावा किसी अन्य अथवा उपरोक्त समस्त मामले को संचालित करने के उद्देश्य हेतु अन्य संगठनों की स्थापना तथा उसके अनुरक्षण हेतु प्राधिकृत है।
ऊर्जा दक्षता ब्यूरो
भारत सरकार ने, ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के उपबंधों के अंतर्गत 1 मार्च, 2002 को ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई) की स्थापना की। ऊर्जा दक्षता ब्यूरो का मिशन, ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के समग्र ढांचे के अन्दर स्व-विनियमन और बाजार सिद्धांतों पर महत्व देते हुए ऐसी नीतियों और रणनीतियों का विकास करने में सहायता देना है जिनका प्रमुख उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था में ऊर्जा की गहनता को कम करना है। यह तभी प्राप्त किया जा सकता है जब इसमें सभी पण्यधारियों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित हो तथा परिणामस्वरूप सभी क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता को अधिकाधिक एवं सतत् रूप से अपनाया जाए।
बीईई की भूमिकाः बीईई, ऊर्जा संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत इसे सौंपे गए कार्यों को करने के लिए अभिहित उपभोक्ताओं, अभिहित अभिकरणों और अन्य संगठनों के साथ समन्वय करके मौजूदा संसाधनों और अवसंरचना को मान्यता देने, इनकी पहचान करने तथा इस्तेमाल का कार्य करता है। ऊर्जा संरक्षण अधिनियम में विनियामक और संवर्द्धनात्मक कार्यों का प्रावधान है।
विनियामक कार्यः बीईई के प्रमुख विनियामक कार्यों में निम्नलिखित कार्य शामिल हैंµ
* उपकरण और उपस्करों के लिए न्यूनतम ऊर्जा निष्पादन मानकों और लेबलिंग डिजाइन का विकास करना।
* विशिष्ट ऊर्जा संरक्षण भवन निर्माण संहिता का विकास करना।
* अभिहित उपभोक्ताओं पर केन्द्रित गतिविधियां
* विशिष्ट ऊर्जा खपत मानदंडों का विकास करना
* ऊर्जा प्रबंधकों और ऊर्जा संपरीक्षकों का प्रमाणन
* ऊर्जा संपरीक्षकों को प्रत्यायन
* अनिवार्य ऊर्जा संपरीक्षक का तरीका और आवधिकता निश्चित करना
* ऊर्जा खपत एवं ऊर्जा संपरीक्षकों की सिफारिशों पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट देने का प्रोफार्मा तैयार करना
बीईई के प्रमुख संवर्द्धनात्मक कार्यः
* ऊर्जा दक्षता और संरक्षण पर जागरूकता उत्पन्न करना एवं इसका प्रसार करना
* ऊर्जा के दक्ष उपयोग और इसके संरक्षण के लिए तकनीकों के कार्मिकों और विशेषज्ञों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करना और आयोजन करना।
* ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्रा में परामर्शी सेवाओं का सुदृढ़ीकरण
* अनुसंधान और विकास का संवर्द्धन
* परीक्षण और प्रमाणन पद्धतियों का विकास करना और परीक्षण सुविधाओं का संवर्द्धन
* प्रायोगिक परियोजनाओं तथा निदर्शन परियोजनाओं के कार्यान्वयन का निरूपण एवं सरलीकरण
* ऊर्जा दक्ष प्रक्रियाओं, उपकरण, युक्तियों और प्रणालियों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना
* ऊर्जा दक्ष उपकरण अथवा उपस्करों के इस्तेमाल के लिए तरजीही व्यवहार को प्रोत्साहन देने के लिए कदम उठाना।
* ऊर्जा दक्ष परियोजनाओं के नूतन निधियन को बढ़ावा देना
* ऊर्जा के दक्ष उपयोग को बढ़ावा देने और इसका संरक्षण करने के लिए संस्थाओं को वित्तीय सहायता देना
* ऊर्जा के दक्ष उपयोग और इसके संरक्षण पर शैक्षणिक पाठ्यक्रम तैयार करना
ऊर्जा के दक्ष उपयोग और इसके संरक्षण से संबंधित अंतरराष्ट्रीय सहयोग के कार्यक्रमों को क्रियान्वित करना
केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग
केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग (सीईआरसी) एक वैधानिक निकाय है जो विद्युत अधिनियम 2003 की धारा-76 के अंतर्गत कार्यरत है। केन्द्रीय विद्युत विनियामक आयोग को शुरू में विद्युत विनियामक आयोग अधिनियम, 1998 के अंतर्गत 24 जुलाई, 1998 को गठित किया गया था।
मिशनः आयोग की थोक विद्युत बाजारों में प्रतिस्पर्द्धा, कार्यकुशलता और मितव्ययिता को बढ़ावा देने, सप्लाई की गुणवत्ता में सुधार करने, मांग आपूर्ति के अंतर, जिससे ग्राहकों के हितों का सम्पोषण हो, को पाटने के लिए संस्थागत बाधाओं को दूर करने के संबंध में सरकार को सलाह देने की योजना है।
आयोग के उद्देश्यः
* भारतीय विद्युत ग्रिड संहिता, उपलब्धता आधारित टैरिफ (एबीटी) के माध्यम से क्षेत्राीय पारेषण प्रणालियों के प्रचालन और प्रबंधन में सुधार करना,
* एक कारगर टैरिफ निर्धारण तंत्रा को तैयार करना जिससे थोक विद्युत और पारेषण सेवाओं की कीमत के संबंध में मितव्ययिता और कार्यकुशलता और न्यूनतम लागत पर निवेश सुनिश्चित होगा,
* अंतर-राज्यिक पारेषण में निर्बाध पहुंच को सरल बनाना,
* अंतर-राज्यिक व्यापार को सरल बनाने के लिए एक बाजार संरचना के सृजन द्वारा विद्युत बाजार के विकास को प्रोत्साहन देना,
* सभी पण्यधारियों के लिए जानकारी देने में सुधार,
* थोक ऊर्जा तथा पारेषण सेवाओं में प्रतिस्पर्द्धात्मक बाजार के विकास के लिए अपेक्षित तकनीकी तथा संस्थानिक परिवर्तनों को सरल बनाना,
* प्रतिस्पर्द्धात्मक बाजारों के सृजन के प्रथम उपाय के रूप में, पर्यावरणीय, सुरक्षा तथा विद्यमान विधायी अपेक्षाओं की सीमा के भीतर पूंजी तथा प्रबंधन के लिए प्रवेश तथा निकासी की बाधाओं के संबंध में सलाह देना।
आयोग के दायित्व एवं कृत्यः
* केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व वाली अथवा उसके द्वारा नियंत्रित उत्पादन कंपनियों के टैरिफ का विनियमन करना,
* खंड (क) में विनिर्दिष्ट केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व वाली या उसके द्वारा नियंत्रित उत्पादन कंपनियों से भिन्न उत्पादन कंपनियों के टैरिफ का विनियमन करना यदि ऐसी उत्पादन कंपनियां एक राज्य से अधिक राज्यों में विद्युत के उत्पादन और विक्रय के लिए संयुक्त स्कीम में शामिल होती हैं या अन्यथा उनकी ऐसी कोई संयुक्त स्कीम है,
* विद्युत के अंतर-राज्यिक पारेषण को विनियमित करना,
* विद्युत के अंतर-राज्यिक पारेषण के लिए टैरिफ अवधारित करना,
* किन्हीं व्यक्तियों को पारेषण अनुज्ञप्तिधारी और उनकी अंतर-राज्यिक संक्रियाओं की बाबत विद्युत व्यापारी के रूप में कृत्य करने के लिए अनुज्ञप्ति जारी करना,
* उपर्युक्त खंड (क) से खंड (घ) तक से संसक्त विषयों के संबंध में उत्पादन कंपनियों या पारेषण अनुज्ञप्तिधारी को अंतर्वलित करने वाले विवादों का न्यायनिर्णयन करना तथा माध्यस्थम् के लिए किसी विवाद को निर्दिष्ट करना,
* अधिनियम के प्रयोजनों के लिए फीस उद्गृहीत करना,
* ग्रिड मानकों को ध्यान में रखते हुए, ग्रिड कोड विनिर्दिष्ट करना,
* अनुज्ञप्तिधारियों द्वारा सेवा की गुणवत्ता, निरंतरता और विश्वसनीयता की बाबत मानकों को विनिर्दिष्ट और प्रवृत्त करना,
* विद्युत के अंतर-राज्यिक व्यापार में, यदि आवश्यक समझा जाए, व्यापार अंतर को नियत करना,
* ऐसे अन्य कृत्यों का निर्वहन करना जो अधिनियम के अधीन समनुदेशित किए जाएं।
केंद्रीय सरकार को निम्नलिखित पर सलाह देनाः * राष्ट्रीय विद्युत नीति और टैरिफ नीति बनाना,
* विद्युत उद्योग के क्रियाकलाप में प्रतिस्पर्द्धा, दक्षता और मितव्ययिता का संवर्द्धन करना,
* विद्युत उद्योग में विनिधान के संवर्द्धन को बढ़ावा देना,
* केन्द्रीय सरकार द्वारा केंद्रीय आयोग को निर्दिष्ट कोई अन्य विषय।
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (केविप्रा) विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 70 द्वारा प्रतिस्थापित निरसित विद्युत (आपूर्ति) अधिनियम, 1948 की धारा(1) के अधीन मूल रूप से गठित एक संविधिक संगठन है। इसकी स्थापना वर्ष 1951 में अंशकालिक निकाय के रूप में की गई थी और वर्ष 1975 में इसे पूर्णकालिक निकाय बनाया गया।
संगठनः
* धारा 70 के अंतर्गत प्राधिकरण में 14 सदस्य से अधिक नहीं होंगे (इसमें अध्यक्ष भी शामिल है) जिसमें से केंद्र सरकार द्वारा चयनित 8 सदस्य पूर्णकालिक होंगे।
* केंद्र सरकार किसी व्यक्ति को, जो प्राधिकरण का सदस्य चुने जाने के लिए अर्ह है, प्राधिकरण के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त कर सकती है या एक पूर्णकालिक सदस्य को प्राधिकरण के अध्यक्ष के रूप में पदनामित कर सकती है।
* प्राधिकरण के सदस्यों को योग्य, समन्वित एवं अभियांत्रिकी, वित्त, वाणिज्य, अर्थशास्त्रा या औद्योगिकीय मामलों से सम्बद्ध कठिनाइयों से निपटने का अनुभव एवं क्षमता रखने वाले व्यक्तियों में से चुना जाएगा, और कम से कम एक सदस्य को निम्न प्रत्येक श्रेणियों में से चुना जाएगा, नामतः
(क) अभिकल्प, विनिर्माण, संचालन एवं स्टेशन सृजन का प्रबंधन में विशेषज्ञता के साथ अभियांत्रिकी
(ख) विद्युत पारेषण एवं वितरण की विशेषज्ञता सहित अभियांत्रिकी
(ग) विद्युत के क्षेत्रा में अनुप्रयोगात्मक अनुसंधान
(घ) अनुप्रयोगात्मक अर्थशास्त्रा, लेखांकन, वाणिज्य या वित्त
* प्राधिकरण का अध्यक्ष एवं सभी सदस्य केंद्र सरकार के प्रसादपर्यंत पद पर बने रहेंगे।
* अध्यक्ष प्राधिकरण का मुख्य कार्यकारी होगा।
* प्राधिकरण का मुख्यालय दिल्ली में होगा।
सभी तकनीकी एवं आर्थिक मामलों में, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ऊर्जा मंत्रालय को सहायता करता है। इस प्राधिकरण का अध्यक्ष भारत सरकार का सचिव भी होता है और अन्य 6 पूर्णकालिक सदस्य भारत सरकार के अतिरिक्त सचिव भी होते हैं। इन्हें सदस्य (थर्मल), सदस्य (हाइड्रो), सदस्य (आर्थिक एवं वाणिज्य), सदस्य (ऊर्जा तंत्रा), सदस्य (नियोजन) एवं सदस्य (ग्रिड संचालन एवं वितरण) के तौर पर पदनामित किया जाता है।
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के कार्य एवं कर्तव्य विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 73 के अधीन वर्णित है। इसके अतिरिक्त केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण को अधिनियम की धाराओं 3, 7, 8, 53, 55 और 177 के अधीन भी कई अन्य कार्यों का निर्वहन करना होता है।
प्राधिकरण के कृत्य एवं कर्तव्यः
* अल्पावधिक और संदर्शी योजना तैयार करना और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के हित में सहायक होने के लिए संसाधनों के इष्टतम उपयोग हेतु आयोजना एजेंसियों के कार्यकलापों का समन्वय करना तथा उपभोक्ताओं को राष्ट्रीय विद्युत नीति से संबंधित मामलों पर केन्द्रीय सरकार को सुझाव देना, विद्युत प्रणाली के विकास के लिए विश्वसनीय और वहनीय विद्युत प्रदान करना।
* विद्युतीय संयंत्रों, विद्युत लाइनों और ग्रिड से संपर्क के निर्माण के लिए तकनीकी मानक निर्दिष्ट करना
* विद्युतीय संयंत्रों और विद्युत लाइनों के निर्माण, प्रचालन और अनुरक्षण के लिए सुरक्षा संबंधी आवश्यकताएं निर्दिष्ट करना
* पारेषण लाइनों के प्रचालन और अनुरक्षण के लिए ग्रिड मानक निर्दिष्ट करना
* विद्युत के पारेषण और आपूर्ति के लिए मीटरों की संस्थापना के लिए शर्तें निर्दिष्ट करना
* विद्युत प्रणाली सुधारने और वृद्धि करने के लिए स्कीमों और परियोजनाओं को समय पर पूरा करने को बढ़ावा देना और सहायता करना
* विद्युत उद्योग में संलग्न व्यक्तियों की कुशलता बढ़ाने के लिए उपायों का संवर्धन करना
* ऐसे किसी विषय, जिस पर सुझाव मांगा जाता है, पर केंद्रीय सरकार को सुझाव देना अथवा किसी विषय पर उस सरकार को सिफारिशें करना। अगर प्राधिकरण की राय में सिफारिशें विद्युत के उत्पादन, पारेषण, व्यापार, वितरण और उपयोग सुधारने में सहायता करेंगी।
* विद्युत के उत्पादन, पारेषण, व्यापार, वितरण और उपयोग से संबंधित रिकॉर्ड और आंकड़े एकत्रित करना तथा लागत, क्षमता, प्रतिस्पर्द्धात्मकता और ऐसे ही मामलों से संबंधित अध्ययन करना
* अधिनियम के अधीन प्राप्त सूचना को समय-समय पर सार्वजनिक करना और रिपोर्ट तथा जांच के प्रकाशन की व्यवस्था करना
* विद्युत के उत्पादन, पारेषण, वितरण और व्यापार को प्रभावित करने वाले विषयों में अनुसंधान का संवर्द्धन करना
* विद्युत का उत्पादन करने अथवा पारेषण करने अथवा वितरण करने के प्रयोजनार्थ कोई जांच करना अथवा कराना
* ऐसे विषयों पर किसी राज्य सरकार, लाइसेंसधारियों अथवा उत्पादक कंपनियों को सुझाव देना, जो उन्हें एक सुधरे हुए तरीके से विद्युत प्रणाली को अपने स्वामित्वाधीन या नियंत्राणाधीन रखते हुए प्रचालित और अनुरक्षित करने में समर्थ बनाएगा और जहां आवश्यक हो दूसरी विद्युत प्रणाली का स्वामित्व अथवा नियंत्राण रखने वाली किसी अन्य सरकार, लाइसेंसधारी या उत्पादक कंपनी के साथ समन्वय करना
* विद्युत के उत्पादन, पारेषण और वितरण से संबंधित सभी तकनीकी विषयों पर उपयुक्त सरकार और उपयुक्त आयोग को सुझाव देना
* इस अधिनियम के अधीन प्रदान किए जाने वाले ऐसे अन्य कार्यों का निर्वहन
विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण
विद्युत अपीलीय ट्रिब्यूनल संविधिक निकाय है जिसे नियामकीय आयोग और अधिनिर्णय अधिकारी के आदेशों के विरुद्ध मामलों की सुनवाई के उद्देश्य हेतु गठित किया गया। इसका गठन केंद्र सरकार द्वारा विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 110 के तहत् 7 अप्रैल, 2004 को किया गया। इसका मुख्यालय दिल्ली में है। गौरतलब है कि विद्युत अधिनियम, 2003 के प्रावधान 10 जून, 2003 से प्रभावी हो गए हैं। बिजली अधिनियम, 2003 के लागू होने से भारतीय बिजली अधिनियम, 1910; बिजली (आपूर्ति) अधिनियम, 1948 तथा बिजली नियामक आयोग अधिनियम, 1988 निरस्त हो गए हैं। बिजली अधिनियम, 2003 जम्मू एवं कश्मीर को छोड़कर समस्त भारत एवं संघ राज्य क्षेत्रों पर लागू होगा।
विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा-110 के अंतर्गत विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण पूरे भारत में अधिनिर्णय अधिकारी या केंद्रीय विनियामक आयोगों या राज्य विनियामक आयोगों/न्यायिक अधिकरणों या संयुक्त आयोगों के आदेशों के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई हेतु स्थापित किए जाएंगे।
न्यायाधिकरण को विद्युत अधिनियम की धारा 121 के तहत् सुनवाई का वास्तविक अधिकार क्षेत्रा सौंपा गया है और सभी आयोगों को उनके संविधिक कृत्यों के निर्वहन हेतु निर्देश जारी करने का अधिकार दिया गया है।
विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण में एक अध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होंगे।
प्रत्येक न्यायपीठ (बेंच) का गठन अध्यक्ष द्वारा किया जाएगा जिसमें कम से कम एक विधि विशेषज्ञ सदस्य और एक तकनीकी सदस्य होगा।
अपीलीय न्यायाधिकरण की शक्तियां एवं कृत्यः
* न्यायाधिकरण सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 द्वारा निर्धारित प्रक्रियाओं द्वारा सीमित नहीं होगा, अपितु प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों से निर्देशित होगा और इस अधिनियम के अन्य प्रावधानों के तहत् होगा। न्यायाधिकरण को अपनी प्रक्रियाओं को नियमित करने की शक्ति होगी।
* न्यायाधिकरण इस अधिनियम (विद्युत अधिनियम, 2003) के अधीन अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेगा।
* इसे कोई अन्य मामला केंद्र सरकार द्वारा सौंपा जा सकता है।
* इस अधिनियम के अंतर्गत अपीलीय न्यायाधिकरण द्वारा जारी किया गया कोई आदेश दीवानी न्यायालय की डिक्री के समान होगा और इस उद्देश्य हेतु अपीलीय न्यायाधिकरण को एक दीवानी न्यायालय की सभी शक्तियां प्राप्त होंगी।
* उपधारा-(3) में किसी बात के होते हुए भी, अपीलीय न्यायाधिकरण स्थानीय अधिकार क्षेत्रा वाले दीवानी न्यायालय को अपने आदेश को हस्तांतरित कर सकेगा और वह दीवानी न्यायालय इस आदेश को इस प्रकार कार्यान्वित करेगा जैसाकि यह उसके द्वारा जारी डिक्री हो।
* अपीलीय न्यायाधिकरण के सम्मुख सभी कार्रवाइयां भारतीय पैनल कोड के अर्थों के तहत् न्यायिक प्रक्रियाएं मानी जाएंगी और अपीलीय न्यायाधिकरण को अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 345 और 346 के उद्देश्य हेतु दीवानी न्यायालय समझा जाएगा।
* कोई व्यक्ति जो अपीलीय न्यायाधिकरण के किसी निर्णय से सहमत नहीं है, अपीलीय न्यायाधिकरण द्वारा उसे दिए गए निर्णय या आदेश के 60 दिनों के भीतर उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकेगा।
भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण
नौवहन और नौचालन के लिये अंतर्देशीय जलमार्गों के विकास और विनियमन हेतु भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (भाअजप्रा) 27 अक्टूबर, 1986 को अस्तित्व में आया। जहाजरानी मंत्रालय से प्राप्त अनुदान के माध्यम से राष्ट्रीय जलमार्गों पर अंतर्देशीय जल परिवहन (अजप) अवसंरचना के विकास और अनुरक्षण हेतु प्राधिकरण मुख्य रूप से परियोजनाएं हाथ में लेता है। प्राधिकरण का मुख्यालय नोएडा में स्थित है। पटना, कोलकाता, गुवाहाटी और कोच्चि में प्राधिकरण के क्षेत्राीय कार्यालय भी हैं और इलाहाबाद, वाराणसी, भागलपुर, फरक्का और कोल्लम में उप-कार्यालय भी।
यह संभाव्यता अध्ययन भी कराता है और अन्य जलमार्गों को राष्ट्रीय जलामार्गों के रूप में घोषणा कराने के लिए प्रस्ताव तैयार करता है। यह अंतर्देशीय जल परिवहन से संबंधित मामलों पर केंद्र सरकार को परामर्श भी देता है और अ.ज.प. क्षेत्रा के विकास में राज्यों को मदद करता है।
संगठनात्मक स्वरूपः भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण में एक अध्यक्ष एवं एक उपाध्यक्ष होता है। तीन पूर्णकालिक सदस्य, सदस्य (वित्त), सदस्य (तकनीकी) एवं सदस्य (यातायात) होते हैं और तीन अंशकालिक सदस्य होते हैं। साथ ही संगठन में सचिव, मुख्य अभियंता (सिविल), मुख्य अभियंता (पी एण्ड सी), कार्यपालक निदेशक (वित्त) एवं अंकेक्षक जैसे अन्य अधिकारी भी होते हैं।
भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण के कार्यः
* राष्ट्रीय जलमार्ग सर्वेक्षण
* नौचालन, अवसंरचना एवं विनियम
* फेयरवे विकास
* पायलेटज करना
* अन्य साधनों के साथ भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण का समन्वय
* केंद्र सरकार को सलाह।
* जलीय सर्वेक्षणों का कार्यान्वयन
* राज्य सरकारों को सहायता
* परामर्शदात्राी सेवाओं का विकास
* अनुसंधान एवं विकास
* जलमार्गों का वर्गीकरण
* मानक एवं सुरक्षा
आणविक ऊर्जा विनियामक बोर्ड
आणविक ऊर्जा विनियामक बोर्ड (एईआरबी) का गठन 15 नवम्बर, 1983 को भारत के राष्ट्रपति द्वारा परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 द्वारा प्रदत्त शक्तियों को निर्वहन करने हेतु अधिनियम के तहत् विशिष्ट विनियामक एवं सुरक्षा कृत्यों को करने के लिए किया गया। एईआरबी के विनियामक प्राधिकार आणविक ऊर्जा अधिनियम एवं पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत् उल्लिखित नियमों एवं अधिसूचनाओं से प्राप्त हुए हैं।
बोर्ड में एक पूर्णकालिक अध्यक्ष, एक एक्सऑफिशियो सदस्य, तीन अंशकालिक सदस्य और एक सचिव होता है। इसके कृत्यों में कई समितियां मदद करती हैं। सभी एईआरबी समितियों के सदस्य सम्बद्ध क्षेत्रा में लंबा अनुभव रखते हैं और आणविक ऊर्जा विभाग, विभिन्न सरकारी संगठनों, अकादमिक संस्थानों और उद्योग से आते हैं। सेवानिवृत विशेषज्ञ भी बड़ी संख्या में विभिन्न एईआरबी समितियों के सदस्य होते हैं।
बोर्ड का उद्देश्य है यह सुनिश्चित करना कि भारत में आयनीकृत विकिरण और आणविक ऊर्जा का इस्तेमाल स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए कोई अवांछित जोखिम उत्पन्न न करे।
एईआरबी के कृत्यः
* विकिरण एवं औद्योगिक सुरक्षा क्षेत्रों दोनों में सुरक्षा नीतियां विकसित करना;
* विभिन्न प्रकार की आणविक एवं विकिरण सुविधाओं की स्थापना, अभिकल्प, विनिर्माण, कृत्य, प्रचालन एवं अकृत्य के लिए सुरक्षा संहिता, निर्देशिका एवं मानक विकसित करना;
* आणविक एवं विकिरण सुविधाओं की अवस्थापना के लिए और इसके विनिर्माण, कृत्य, प्रचालन एवं अकृत्य के लिए उचित सुरक्षा समीक्षा एवं मूल्यांकन के पश्चात् सहमति प्रदान करना;
* एईआरबी द्वारा अनुशंसित एवं समीक्षा, मूल्यांकन, नियामकीय परीक्षण एवं प्रवर्तन द्वारा सभी चरणों के लिए दी गई सहमति के नियामकीय आवश्यकताओं की प्रासंगिकता सुनिश्चित करना;
* आणविक एवं विकिरण सुविधाओं के लिए आपात तैयारी योजना की समीक्षा करना;
* रेडियोएक्टिव òोतों, किरणित ईंधन एवं जीवाश्म पदार्थ के परिवहन की समीक्षा करना;
* सुरक्षा के क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास संवर्द्धन का प्रयास करना;
* रेडियोलॉजिकल सुरक्षा के महत्व के व्यापक मुद्दों पर लोक हित में सूचना हेतु जरूरी कदम उठाना; और
* देश में संविधिक निकायों और साथ ही विदेशी संस्थाओं से सुरक्षा मामलों पर बातचीत एवं विचार-विमर्श करते रहना।
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