भारतीय चिकित्सा परिषद् अधिनियम, 1956 को निरस्त करने और ऐसी चिकित्सा शिक्षा प्रणाली प्रदान करने के लिए जो, पर्याप्त एवं उच्च गुणवत्ता वाले चिकित्सा पेशेवरों की उपलब्धता; चिकित्सा पेशेवरों द्वारा नवीनतम चिकित्सा अनुसंधानों का उपयोग;  चिकित्सा संस्थानों का नियत समय पर आकलन और; एक प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली, सुनिश्चित करती हो, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक 2017, 29 दिसंबर, 2017 को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने लोकसभा में प्रस्तुत किया। विधेयक के मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं

यह विधेयक राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) का गठन करता है।

विधेयक के पारित होने के तीन वर्षों के भीतर राज्य सरकारों को राज्य स्तर पर राज्य चिकित्सा परिषदों का गठन करना होगा।

एनएमसी में 25 सदस्य होंगे जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा।

एनएमसी के कार्यों में, चिकित्सा संस्थानों और चिकित्सा पेशेवरों को नियमित करने के लिए नीतियां बनाना; स्वास्थ्य सेवा से संबंधित मानव संसाधनों और अवसंरचना की जरूरत का आकलन करना; सुनिश्चित करना कि राज्य मेडिकल कमीशन बिल में दिए गए रेगुलेशन का पालन कर रही है अथवा नहीं; और विधेयक के अंतर्गत विनियमित होने वाले निजी चिकित्सा संस्थानों और मानद (डीम्ड) विश्वविद्यालयों की अधिकतम 40 प्रतिशत सीटों की फीस निश्चित करने के दिशा-निर्देश बनाना, शामिल हैं।

विधेयक एनएमसी की निगरानी में स्वायत्त बोर्ड का गठन करता है। प्रत्येक स्वायत्त बोर्ड में अध्यक्ष और दो सदस्य होंगे, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा।

विधेयक के तहत् सरकार एक चिकित्सा एडवाइजरी परिषद् का गठन करेगी। इसके माध्यम से राज्य/केंद्र-शासित प्रदेश एनएमसी से संबंधित अपने विचार साझा कर सकते हैं।

विधेयक द्वारा विनियमित किए जाने वाले सभी चिकित्सा संस्थानों में अंडर-ग्रैजुएट चिकित्सा शिक्षा में प्रवेश के लिए एकल नेशनल एलिजिबिलिटी कम इंट्रेस टेस्ट (नीट) होगा।

 

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