नासा मंगल ग्रह तक पहुंचने के लिए एटोमिक रॉकेट का प्रयोग करेगा

मंगल ग्रह पर पहुंचने की प्रतिस्पर्धा में अव्वल रहने के लिए नासा 1970 के दशक के एटॉमिक रॉकेटों का प्रयोग करेगा। नासा ने बीडब्ल्यूएक्सटी न्यूक्लियर इनकॉर्पोरेशन एनर्जी के साथ 18.8 मिलियन डॉलर का समझौता किया है, जिसमें यह निश्चित किया गया कि अंतरिक्ष में दूर तक यात्रा करने के लक्ष्य के लिए एक रिएक्टर को डिजाइन किया जाएगा तथा ईंधन को भी विकसित किया जाएगा जिसका प्रयोग न्यूक्लियर-थर्मल प्रोपल्शन इंजन में किया जा सके।

भले ही यह बहुत लंबी यात्रा की छोटी सी शुरुआज है परंतु इस विचार पर रूस तथा चीन भी काम कर रहे हैं। पारंपरिक रॉकेट में ईंधन को जलाया जाता है जिससे दबाव बनाया जा सके। इस एटॉमिक सिस्टम में रिएक्टर का प्रयोग कर प्रोपेलेंट को गर्म किया जाता है, जैसे कि तरल हाइड्रोजन जो कि नोजल के माध्यम से फैलकर क्राफ्ट को संचालित करती है।

यह तकनीक रॉकेट के ईंधन का उपयोग करने की क्षमता को दोगुना कर देती है जिससे तुलनात्मक रूप से छोटा क्राफ्ट तथा कम संक्रमण काल का उपयोग संभव हो पाता है। यह घटक बहुत ही व्यापक है, विशेषतः उस मिशन के लिए जिसमें बहुत से प्रोपेलेंट की आवश्यकता हो, जैसे कि मंगल ग्रह के लिए उड़ान। यह तकनीक उस कंपनी के लिए बहुत ही फायदेमंद होगी जो कि इस तकनीक को सबसे पहले इजाद कर लेगा क्योंकि इसकी मांग हर देश को है।

इस तकनीक की आवश्यकता विशेषकर अमेरिका जैसे देशों को अधिक है जिनके एटॉमिक ऊर्जा के क्षेत्रा में एक मंदी आ गई है। अमेरिका, यूरोप तथा जापान में सख्त कानून, निर्माण कार्य में देरी, लोगों को भरोसा न होना तथा राजनीतिक विरोधी दलों के कारण नाभिकीय ऊर्जा के विकास का काम ठप्प हो गया जिससे नई कंपनियां दिवालिया हो गईं।

जर्मनी, दक्षिणी कोरिया और ताइवान जैसे देश एक नवीकरणीय ऊर्जा या सस्ती प्राकृतिक गैस जैसे विकल्प खोज रहे हैं तथा चीन और रूस जैसे देशों को नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्रा में पीछे छोड़ रहे हैं। रूस की एक प्रोटोटाइप नाभिकीय इंजन को विकसित करने की योजना है जिसे मंगल ग्रह जाने के लिए प्रयोग में लाया जा सके।

रूस ने अब तक इस क्षेत्रा में प्रगति हासिल कर 30 फिजन रिएक्टरों को अंतरिक्ष में स्थापित कर दिया है। चीन का लक्ष्य है कि वह वर्ष 2045 तक एटॉमिक ऊर्जा से चलने वाले शटल को अंतरिक्ष खोजी योजनाओं में प्रयुक्त करे।

नासा को मंगल ग्रह तक पहुंचने की प्रतियोगिता में एलन मस्क जैसे उद्योगपतियों से भी चुनौती मिल रही है। एलन मस्क ने लोगों को मंगल ग्रह तक पहुंचाने का वादा किया है। एलन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स ऐसे ईंधन को विकसित करने पर काम कर रही है जिसमें तरल ऑक्सीजन और मीथेन का प्रयोग किया जाए।

नासा का लक्ष्य मंगल ग्रह पर मानव कॉलोनी बसाने का भी है। एजेन्सी और ऊर्जा विभाग ऐसे न्यूक्लियर फिजन रिएक्टर्स को विकसित कर रहा है, जिन्हें अन्य ग्रहों या चांद पर स्थापित किया जाएगा तथा ये दस किलोवॉट तक की ऊर्जा देंगे। इन रिएक्टरों को किलो पावर नाम दिया गया है।

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