सर्वोच्च न्यायालय ने जनवरी 2018 में उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा है कि शहरी बेघरों के आधार कार्ड किस प्रकार से बनाए जा रहे हैं। न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने देश भर में शहरी बेघरों को बसेरे उपलब्ध कराने हेतु दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार से यह जानकारी मांगी। पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से यह प्रश्न कियाµ‘यदि कोई व्यक्ति बेघर है तो आधार कार्ड में उसे कैसे वर्णित किया जाता है? मेहता ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, हां, यही संभावना है कि उनके पास आधार कार्ड नहीं होगा। इस पर पीठ ने प्रश्न किया कि क्या राज्य सरकार के लिए उन बेघर लोगों का कोई अस्तित्व ही नहीं है, जिनके पास आधार नहीं है और क्या ऐसे लोगों को बसेरों में जगह नहीं मिलेगी? जस्टिस लोकुर के पूछे जाने पर कि वो बेघर लोग आधार कार्ड कैसे बनवायेंगे, जिनका कोई स्थायी पता नहीं है, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह कहना गलत होगा कि सरकार के लिए बेघर लोगों का कोई अस्तित्व ही नहीं है। मेहता ने कहा कि अधिकतर शहरी बेघर ग्रामीण इलाकों से आए हैं, जिनका पैतृक गांव में स्थायी पता होता है। ये लोग अपने उसी पते का उपयोग कर आधार कार्ड बनवा सकते हैं।