इसरो विश्व के सबसे शक्तिशाली यान की तकनीक पर काम कर रहा है
स्पेस एक्स के विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली रॉकेट ‘फॉल्कन हेवी’ की तर्ज पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र इसरो भी दोबारा प्रयोग किए जा सकने वाली सामग्री को विकसित करने के लक्ष्य हेतु काम कर रहा है, इससे पूरे मिशन की लागत में कमी आएगी। फॉल्कन हेवी में प्रयुक्त बूस्टर्स में से दो का दूसरी बार उपयोग किया गया है। इससे पहले ये फॉल्कन नाइन के प्रक्षेपण में प्रयुक्त किए गए थे।
इसरो ने बताया कि रिसर्च एंड डेवलपमेंट डिपार्टमेंट तीन तकनीकों पर काम कर रहा है। पहली, जिसके द्वारा यान को ऑर्बिटल में दोबारा ले जाया जा सके, दूसरी जिसके द्वारा एक बार प्रयोग किए जा चुके एयरस्ट्रिप पर दोबारा प्रयोग किए जा सकने वाले लॉन्च वेहिकल की लैंडिंग तथा तीसरी दो बार प्रयोग किए जा सकने वाले रॉकेट स्टेज पर।
इसरो इन तीनों तकनीकों पर एक साथ शोध कार्य कर रहा है तथा उम्मीद की जा रही है कि दूसरी तकनीक का परीक्षण दो साल के अंदर कर लिया जाएगा (वर्ष 2016 में दोबारा प्रयोग किया जा सकने वाले लॉन्च वेहिकल का पहला परीक्षण किया जा चुका है।)
इसरो की प्राथमिकता है कि जी.एस.एल.वी.एम. के भार उठाने की क्षमता को चार टन से बढ़ाकर छह टन किया जाए। इसरो का कहना है कि भार उठाने की क्षमता में इजाफा करके हम आत्मनिर्भर हो जाएंगे तथा हमें अपनी छह टन से भारी सैटेलाइट को प्रक्षेपित करने के लिए यूरोपियन स्पेस पोर्ट पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
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