जनवरी 2018 में सरकार ने इंटरनेट से संबंधित अपराधों को रोकने के लिए साइबर वॉरियर पुलिस फोर्स (सीडब्ल्यूपीएफ) के गठन का निर्णय लिया। सीडब्ल्यूपीएफ गृह मंत्रालय के साइबर तथा इंफोर्मेशन सिक्योरिटी डिवीजन के अंतर्गत (सीआईएस) नेशनल इंफोर्मेशन सिक्योरिटी पॉलिसी तथा दिशा-निर्देश के अंतर्गत कार्य करेगी। इसकी दो अन्य शाखाएं हैं साइबर क्राइम तथा इंटरनल सिक्योरिटी। इसके गठन की प्रक्रिया प्रारंभ की जा चुकी है। इसी प्रकार की योजना का निर्माण सेना द्वारा किए जाने की भी संभावना है। अब तक सीडब्ल्यूपीएफ के अधिकार-क्षेत्रा पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है जैसे कि यह पुलिस बल अपनी शक्ति तथा कर्मी कहां से प्राप्त करेगा तथा क्या यह किसी को बंदी बना सकेगा। सीआईएस डिवीजन ने अपने कार्य आरम्भ कर दिए हैं। गृह मंत्रालय ने राज्यों तथा केंद्र शासित राज्यों में राज्य तथा जिला साइबर अपराध समन्वय प्रकोष्ठ के निर्माण हेतु शासकीय सूचना पहुंचा दी है। केंद्र ने सुझाव दिया है कि राज्य के साइबर अपराध समन्वय प्रकोष्ठ का नेतृत्व अतिरिक्त महानिदेशक या आईजी रैंक के अधिकारी करेंगे और जिला स्तर के साइबर सेल का नेतृत्व पुलिस उपाधीक्षक या अतिरिक्त अधीक्षक द्वारा किया जाएगा।

केंद्र सरकार द्वारा राज्य के पुलिस तथा अर्धसैनिक बलों को साइबर अपराधों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने को कहा गया है। गृह मंत्रालय ने राज्यों को ऐसी व्यवस्था निर्मित करने के लिए कहा जो कि इंटरनेट पर होने वाले कार्यों की निगरानी करे तथा अपराधियों द्वारा की जाने वाली गतिविधियों पर लगाम लगाई जा सके। इसके साथ-साथ मूलभूत फोरेन्सिक लैब का निर्माण भी किया जाए। ऐसे प्रोफाइल्स की सूची बनाई जाए जिन पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी, मानव तस्करी तथा ब्लैक मेलिंग से संबद्ध होने की शंका हो। गृह मंत्रालय ने साइबर फोरेन्सिक ट्रेनिंग के लिए प्रयोगशाला तथा केंद्र की स्थापना हेतु 82.9 करोड़ की धनराशि प्रदान की है। उल्लेखनीय है कि साइबर अपराधियों की अत्याधुनिक तकनीक और साइबर दुनिया में पहचान छुपाने में महारत को देखते हुए इससे निपटने में सामान्य पुलिस नाकाफी साबित हो रही है। इसीलिए साइबर विशेषज्ञों की आवश्यकता को यह पुलिस बल पूरा करेगा।

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