सामाजिक प्रगति सूचकांक: भारत के राज्य

विश्व की जनसँख्या के छठे हिस्से को समाहित करने वाला  भारत अपने आकार के देशों की श्रेणी में प्रथम देश है जो  देशभर में सामाजिक प्रगति को अच्छी तरह से मापन कर रहा है. आंकड़ों की अंतर्दृष्टि पर कार्य करते हुए , भारत सरकार, व्यावसायिक संस्थानों और निवेशकों के पास उन क्षेत्रों में वास्तविक सुधार लाने की क्षमता व लक्ष्य होगा जिनमे कई राज्य पीछे हैं, जैसे पोषण, सूचना और संचार तक पहुंच, और उन्नत शिक्षा की उपलब्धता .

सामाजिक प्रगति सूचकांक भारत के 562 जिलों और 50 सबसे बड़े शहरों के लिए सामाजिक प्रगति को व्यापक रूप से मापने के लिए बहु-वर्षीय प्रयास में पहला कदम है .प्रतिस्पर्धात्मकता के लिए संस्थान  (Institute for Competitiveness) द्वारा नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (निति आयोग) के सहयोग से विकसित यह सूचकांक , राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश के 1.3 अरब से अधिक लोगों के लिए जीवन की गुणवत्ता के पहले व्यापक माप का प्रतिनिधित्व करता है.

हाल के दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था में एक बड़ा बदलाव आया है और अब यह दुनिया में बड़ी तेज़ी से बढ़ रही  है .सूचकांक के आकड़े 2005-2016 के परिणामों का वर्णन करते हैं और बताते है कि इस उल्लेखनीय आर्थिक परिवर्तन के साथ जीवन की गुणवत्ता में समग्र सुधार हुए हैं. लेकिन इस उत्साहजनक प्रवृत्ति के बावजूद, देश अभी भी स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी कई बुनियादी सार्वजनिक सेवाओं को पर्याप्त रूप से उपलब्ध कराने में विफल रहा है, और यहां तक कि सबसे अच्छा  प्रदर्शन करने वाले राज्यों में भी सुधार के लिए काफी गुंज़ाइश है .

सूचकांक 54 सामाजिक और पर्यावरणीय संकेतकों का विश्लेषण करता है जिनका आर्थिक मैट्रिक्स माप नहीं कर पाते जैसे – आश्रय, पोषण, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और स्वतंत्रता तक पहुंच. यह 17 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में से 16 से संबंधित परिणामों को लेकर एसडीजी कार्यान्वयन और बेंचमार्किंग विश्लेषण हेतु अमूल्य प्रॉक्सी उपायों का आंकलन करेगा.

परिणाम

सूचकांक से पता चलता है कि राज्य अपने आर्थिक विकास को सामाजिक प्रगति में बदलने में समान रूप से  सफल नहीं हुए हैं .उदाहरण के लिए केरल सामाजिक प्रगति सूचकांक पर सर्वोच्च स्कोरिंग (67.75 का स्कोर) राज्य है, जबकि गुजरात ,जिसका सकल घरेलू राज्य उत्पाद तुलनात्मक रूप से काफी अधिक है, का सामाजिक प्रगति स्कोर 57.61 है .यह दृढ़ता से सुझाव देता है कि अन्य राज्य अपने स्वयं के स्कोर बढ़ाने और अपने लोगों के जीवन में सुधार के लिए केरल की नीतियों और शासन से सीख सकते हैं.

सूचकांक दिलचस्प विषयगत अंतर्दृष्टि भी देता  है. स्वास्थ्य एक संपूर्ण भारत के लिए चुनौती है. सूचकांक बताता है कि देश कुपोषण और मोटापे के दोहरे स्वास्थ्य संकट से ग्रस्त है. ये चुनौतियां आय के साथ गहराई से संबंधित हैं. सभी कम आय वाले राज्यों ,मणिपुर को छोड़कर, में मोटापे की दर कम है ,लेकिन कुपोषण की उच्च दर है. जबकि कई उच्च आय वाले राज्यों में मोटापे की दर अधिक है.सभी 28 राज्यों में व्यापक सामाजिक प्रगति प्रवृत्तियां भी हैं जो स्पष्ट रूप से अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं . मूलभूत मानव आवश्यकताओं के आयाम , जो मानव को जीवित रहने के लिए महत्वपूर्ण सामाजिक प्रगति के पहलुओं को समाहित करते हैं, देश भर में पोषण और मूल चिकित्सा देखभाल में सबसे कमजोर हैं, परन्तु शायद अप्रत्याशित रूप से, इस आयाम में भारत का सबसे मजबूत प्रदर्शन जल और स्वच्छता में है.

कल्याण आयाम में, जिसमें उन सेवाओं को शामिल किया गया है जो नागरिकों को अपने जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सक्षम बनाती हैं , सबसे कम स्कोर सूचना और संचार तक पहुंच में है .

अवसर आयाम में, जो इस बात की माप करता है कि क्या समाज अपनी क्षमता को पूरा करने का अवसर प्रदान करता है, भारत का सबसे कम अंक उन्नत शिक्षा तक पहुंच में हैं. शैक्षिक संस्थानों में नामांकन अनुपात चीन जैसी  अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं से  बदतर है . इस क्षेत्र में भारत का सबसे मजबूत प्रदर्शन व्यक्तिगत स्वतंत्रता और व्यक्तिगत पसंद अथवा चुनाव है. यह एक प्रमुख सकारात्मक घटक है क्योंकि बहुत से  देशों में इसे लगातार चुनौती मिलती है .

♦ प्रदीप गौतम

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