त्वचा की कोशिकाओं से मनुष्यों की कार्य करने वाली पहली मांसपेशी विकसित की गई

वैज्ञानिकों ने मनुष्यों की ऐसी छोटी तथा कृत्रिम मांसपेशी विकसित कर ली है जो कि न्यूरल तथा इलेक्ट्रीकल उत्प्रेरक की ऐसी ही प्रतिक्रिया देती है जैसे कि वास्तविक मांसपेशी। ये मांसपेशी के तंतु त्वचा की कोशिकाओं से बने हैं ना कि मांसपेशी की कोशिकाओं से।

इससे पहले वैज्ञानिक मांसपेशी की कोशिकाओं को अन्य प्रकार की कोशिकाओं से बना चुके थे परंतु अब तक किसी से बना चुके थे परंतु अब तक किसी ने कार्य कर सकने वाली मांसपेशी तंतु किसी मांसपेशी कोशिका के अलावा किसी कोशिका से निर्मित नहीं की थी।

यह जानकारी नेचर कम्यूनिकेशन नामक जर्नल में दी गई है। यह खोज आनुवांशिक मांसपेशीय दुर्विकास का बेहतर अध्ययन करने में सहायक होगी, साथ ही इसके इलाज के भी नए विकल्प खोजने में सहायक होगी।

वैज्ञानिकों ने मनुष्यों की त्वचा से कोशिकाएं ली फिर एक ज्ञात तकनीक के द्वारा इन कोशिकाओं को इंडयूसड प्लूरीपोटेंट स्टैम सेल्स में तब्दील कर दिया। ये कोशिकाएं किसी भी तरह की मानव कोशिका में बदली जा सकती हैं। इसके बाद एक नई प्रक्रिया से वैज्ञानिकों ने इन प्लूरीपोटैंट सेल्स को मसल स्टेम सेल्स में परिवर्तित कर दिया, ये नई कोशिकाएं मायोजेनिक प्रोजिनेटर कहलाती हैं। किसी दाता के एक प्लूरीपोटेंट स्टेम सेल का उपयोग करते हुए हजारों मसल स्टेम सेल्स बनाई जा सकती हैं।

ऐसा करना इसलिए संभव है क्योंकि एक कोशिका को हजारों कोशिकाओं में बदला जा सकता है। प्लूरीपोटेंट स्टेम सेल्स में एक प्रोटीन Pa × 7 डाल दिया जाता है जो कि कोशिका को मांसपेशी कोशिका में परिवर्तित होने का सिग्नल देता है। एक बार पर्याप्त मात्रा में मसल स्टेम सेल प्राप्त हो जाने पर Pa × 7 प्रोटीन को निष्क्रिय कर दिया जाता है।

इन मसल सेल्स को एक  कल्चर में डाल दिया जाता है जिसमें बहुत से पोषक तत्व तथा विकास के लिए आवश्यक पदार्थ होते हैं जो कि कोशिकाओं को मासपेशी तंतु बनाने के लिए उत्प्रेरित करते हैं। इस प्रक्रिया के तीन सप्ताह बाद 2 सेंटीमीटर लंबे तथा लगभग 1 मिलीमीटर व्यास के मांसपेशी के ऊतक इस विलियन में बन जाते हैं।

वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह प्रक्रिया आनुवांशिक मांसपेशीय रोग के अध्ययन में सहायक होगी जैसे कि डचेन पेशी अपविकास जिसमें लगभग चार वर्ष की आयु से ही मांसपेशी की दुर्बलता होने लगती है। यह स्थिति बहुत जल्दी से खराब होने लगती है और लगभग 12 वर्ष की आयु तक आते-आते रोगी चलने-फिरने के योग्य नहीं रहता। इस प्रकार के रोगों का इलाज ढूंढने में यह नई खोज बहुत सहायक हो सकती है।

वैज्ञानिकों द्वारा निर्मित नए तंतु क्योंकि पूर्णतः काम कर रहे हैं, जिससे वैज्ञानिक ये पता लगा सकते हैं कि ये किस उत्प्रेरक के लिए कैसी प्रतिक्रिया दे सकते हैं। ये भी देखा जा सकता है कि कौन-सी दवाइयां या कौन-से इलाज इन रोगों के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है। यह तकनीक जानवरों पर होने वाले प्रयोगों के परिणामों से कहीं अधिक सटीक परिणाम दे सकती है।

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