जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (सीसीपीआई) 2018

जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (सीसीपीआई)-2018 ,15 नवंबर 2017 को बॉन, जर्मनी में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन वार्ता (सीओपी 23) के मौके पर जारी किया गया. यह जर्मनवाच, नव जलवायु संस्थान और जलवायु एक्शन नेटवर्क द्वारा जारी किया जाता है.

पृष्ठभूमि

वैश्विक जलवायु की रक्षा करने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, पेरिस में दिसंबर 2015 में आयोजित दलों के 21 वें सम्मेलन ने ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से कम बनाये रखने के लक्ष्य को अपनाया.वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए अपनी नई पद्धति के साथ, जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (सीसीपीआई) पेरिस में हुए जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के योगदान में देशों की प्रगति को मापने के लिए अपनाया गया है. यह जुलाई 2017 में पहली बार जी 20 देशों के लिए लागू किया गया, और अब यह जलवायु परिवर्तन निष्पादन सूचकांक (सीसीपीआई) मूल्यांकन 56 देशों व ईयू के लिए अपनाया गया .

जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक जलवायु को लेकर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए बनाया गया एक उपकरण है. इसका लक्ष्य उन देशों पर राजनीतिक और सामाजिक दबाव डालना है, जो अब तक जलवायु को क्षति पहुचाने में सबसे ऊपर हैं, और  जलवायु संरक्षण पर महत्वाकांक्षी कार्रवाई करने में विफल रहे हैं. इसका उद्देश्य उन देशों ,जो जलवायु संरक्षण हेतु सर्वोत्तम उपाय कर रहे है, को विशेष रूप से उजागर करना है.

जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक(सीसीपीआई)

जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (सीसीपीआई) जलवायु परिवर्तन से निपटने में देशों के प्रयासों का ट्रैक रखता है.मानकीकृत मानदंडों के आधार पर, सूचकांक 56 देशों और यूरोपीय संघ के जलवायु संरक्षण के प्रदर्शन का मूल्यांकन और तुलना करता है जो वैश्विक ऊर्जा से संबंधित CO2 उत्सर्जन के लगभग 90% के लिए एक साथ जिम्मेदार हैं.मूल्यांकन का 80% ,उत्सर्जन की प्रवृत्ति और उत्सर्जन स्तर के उद्देश्य संकेतकों पर आधारित है एवं मूल्यांकन का 20% ,संबंधित देशों के 200 से अधिक विशेषज्ञों द्वारा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जलवायु नीति आकलन के सूचकांक परिणामों के आधार पर बनाया गया है.

विभिन्न देशों का  प्रदर्शन 

इस श्रेणी के रैंकिंग परिणाम किसी देश के कुल प्रदर्शन से परिभाषित किए गए हैं, जो चार श्रेणियों –ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन, नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा उपयोग और जलवायु नीति के अंतर्गत 14 सूचकों से सम्बंधित हैं .सीसीपीआई 2018 के परिणाम 56 मूल्यांकन वाले देशों और यूरोपीय संघ के भीतर जलवायु संरक्षण और प्रदर्शन में मुख्य क्षेत्रीय मतभेदों को दर्शाते हैं. सीओ 2 उत्सर्जन में वृद्धि दर कम होने के बावजूद, अभी भी कोई देश इस वर्ष के सूचकांक में रेटिंग “बहुत अधिक” तक पहुंचने के लिए पर्याप्त रूप से अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाया है.चीन, जो उच्चतम जीएचजी उत्सर्जक देश में से एक है, 41 वें स्थान पर है.

पिछले वर्ष की रैंकिंग के समान, शीर्ष तीन रैंकिंग को अब भी खाली रखा गया है क्योंकि किसी भी देश ने 2015 में की गयी प्रतिबद्धताओं का पालन नहीं किया है .पेरिस जलवायु समझौते का लक्ष्य है कि वैश्विक स्तर पर औसत तापमान दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना और 1.5 डिग्री सेल्सियस तक के करीब रखना.रिपोर्ट ने देशों द्वारा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम से कम 40 प्रतिशत तक कम करने और वर्ष 2030 तक कम से कम 27 प्रतिशत तक ऊर्जा दक्षता और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ाने के लिए देशों द्वारा प्रतिबद्धताओं को ध्यान में रखा है .रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक ऊर्जा नवीकरण गति ले रहा है, लेकिन कोई देश पर्याप्त प्रयास कर रहा है इसके लिए, देशों को लक्ष्य और क्रियान्वयन को मजबूत करना होगा .

इस वर्ष  के सूचकांक में, स्वीडन का स्थान अग्रणी है, उसके बाद लिथुआनिया और मोरक्को है .मध्यम-प्रदर्शनकारी देशों के समूह में ब्राजील, जर्मनी, मैक्सिको और यूक्रेन जैसे देश हैं ,जबकि न्यूजीलैंड, नीदरलैंड और ऑस्ट्रिया को समग्र रेटिंग में निचले क्रम में रखा गया है. सऊदी अरब, ईरान , कोरिया गणराज्य, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका इस वर्गीकरण के नीचे के सबसे कम स्कोर करने वाले पांच देशों में हैं इन्होने लगभग सभी श्रेणियों में कम या बहुत कम स्कोर किया है. इन देशों ने उत्सर्जन के स्तर को कम करने की दिशा में कोई प्रगति नहीं की है, न ही ऐसा करने के लिए कोई महत्वाकांक्षा दिखाई है.

आंकड़े अक्षय ऊर्जा में वृद्धि की आशा दिखाते हैं , इनमे सौर और पवन ऊर्जा की सस्ती कीमतों और कई देशों में ऊर्जा को बचाने में सफलता भी परलक्षित होती है. यह पिछले तीन वर्षों में वैश्विक ऊर्जा CO2 उत्सर्जन को स्थिर करने के लिए जिम्मेदार था.लेकिन कुछ दशकों में पूरी तरह से नवीकरणीय ऊर्जा आधारित विश्व अर्थव्यवस्था के लिए प्रगति बहुत धीमी गति से हासिल की जा रही है, क्योंकि तेल और गैस की खपत में वृद्धि कोयले के उपयोग में आने वाली कमी की तुलना में बहुत ज्यादा है.  भारत इस बार 14 वें स्थान पर है, पिछले वर्ष इसके 20 वें स्थान से सुधार हुआ है.सीसीपीआई 2018 में भारत के रैंक में सुधार इंगित करता है कि भारत सरकार ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) के उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रयासरत है जिससे कि उसके बिजली क्षेत्र को हरित प्रौद्योगिकी के लिए बदल दिया जाए.

♦ प्रदीप गौतम

 

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