शिक्षा संबंधी निकाय

अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद्

अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् (एआईसीटीआई) का गठन सन् 1945 में किया गया और एआईसीटीई अधिनियम, 1987 के तहत् एक संविधिक निकाय बना। परिषद् का गठन पूरे देश में तकनीकी शिक्षा तंत्रा के सहयोगी विकास एवं उचित नियोजन के विचार के साथ किया गया। तकनीकी शिक्षा में नियोजित मात्रात्मक संवृद्धि एवं मापदंडों एवं मानकों की उचित व्यवस्था तथा विनियमन के संबंध में ऐसी शिक्षा के गुणात्मक सुधार को प्रोत्साहित करना। अधिनियम में उल्लिखित एआईसीटीई के संविधिक निकाय हैं परिषद्, कार्यकारी समिति, क्षेत्राीय समितियां एवं अखिल भारतीय अध्ययन बोर्ड। परिषद् एक 51 सदस्यीय निकाय है जिसमें 1 अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं सदस्य सचिव हैं जिनकी पूर्णकालिक नियुक्ति होती है। इसके अतिरिक्त परिषद् में भारत सरकार के विभिन्न विभागों के प्रतिनिधि, राज्यसभा एवं लोकसभा के प्रतिनिधि शामिल हैं। परिषद् का मुख्यालय नई दिल्ली में अवस्थित है।

परिषद् के कृत्य एवं दायित्वः * तकनीकी शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में सर्वेक्षण कराना, सम्बद्ध मामलों पर आंकड़े एकत्रित करना और तकनीकी शिक्षा में जरूरी संवृद्धि एवं विकास का अनुमान लगाना।

* देश में सभी स्तरों पर तकनीकी शिक्षा के विकास को समन्वित करना।

* परिषद् के वित्तीय कोष का आबंटन ऐसे अनुदानों, ऐसी सेवा शर्तों पर करना जोµ;पद्ध तकनीकी संस्थानों, एवं विकास ;पपद्ध विश्वविद्यालयों में तकनीकी शिक्षा के विकास के लिए उपयुक्त हो।

* नई एवं स्थापित तकनीकियों, पीढ़ियों में नवाचारों, शोध एवं विकास को प्रोत्साहित करना और शिक्षा पद्धति के सर्वांगीण विकास के लिए और विकास की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नई तकनीकियों को अपनाना एवं अनुकूलन करना।

* समाज के कमजोर वर्गों, विकलांगों एवं महिलाओं के लिए तकनीकी शिक्षा प्रदान करने हेतु योजनाएं तैयार करना।

* अनुसंधान एवं विकास संगठनों, उद्योगों एवं समुदायों को शामिल करते हुए तकनीकी शिक्षा व्यवस्था एवं अन्य सम्बद्ध व्यवस्थाओं के बीच एक प्रभावी सम्पर्क सूत्रा को बढ़ावा देना।

* ट्यूशन एवं अन्य शुल्कों के लिए मापदण्ड एवं निर्देश निर्धारित करना।

* पाठ्यक्रम, शारीरिक एवं निर्देशात्मक सुविधाएं, स्टाफ पैटर्न, स्टाफ योग्यताएं, गुणवत्तापरक निर्देश, मूल्यांकन एवं परीक्षाओं हेतु मापदण्ड एवं मानक तैयार करना।

* तकनीकी संस्थानों को स्वायत्तता देने संबंधी मापदण्ड तैयार करना।

* तकनीकी शिक्षा के व्यापारीकरण को रोकने हेतु सभी आवश्यक कदम उठाना।

* किसी तकनीकी संस्थान की जांच करना।

* परिषद् द्वारा निर्धारित मापदण्डों एवं मानकों पर तकनीकी संस्थानों एवं कार्यक्रमों के आवधिक मूल्यांकन हेतु एक राष्ट्रीय एक्रीडिटेशन (मान्यता) बोर्ड का गठन करना।

* अन्य ऐसे कार्य करना जो इसे सौंपे जाएं।

राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद्

1973 से अपनी पूर्व स्थिति में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् (एनसीटीई) अध्यापक शिक्षा से संबंधित सभी मामलों में केंद्रीय और राज्य सरकारों के लिए एक सलाहकार निकाय थी जिसका सचिवालय राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान तथा प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) के अध्यापक शिक्षा विभाग में स्थित था। शैक्षणिक क्षेत्रों में इसके प्रशंसनीय कार्य के बावजूद यह अध्यापक शिक्षा में मानकों का पालन सुनिश्चित करने तथा घटिया अध्यापक शिक्षा संस्थानों की बहुलता रोकने के अपने अनिवार्य विनियामक कार्य नहीं कर सकी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनपीई) 1986 और उसके अधीन कार्य योजना ने अध्यापक शिक्षा की प्रणाली में आमूलचूल सुधार लाने की दिशा में पहले उपाय के रूप में एक संविधिक दर्जे और आवश्यक संसाधनों से युक्त राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् की परिकल्पना की गई थी। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् अधिनियम, 1993 (1993 का 73वां) के अनुसरण में एक संविधिक निकाय के रूप में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् 17 अगस्त, 1995 को स्थापित की गई।

उद्देश्यः राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् (एनसीटीई) का मुख्य उद्देश्य समूचे देश के भीतर अध्यापक शिक्षा प्रणाली की नियोजित और समन्वित उन्नति प्राप्त करना, अध्यापक शिक्षा प्रणाली में मानदण्डों और मानकों का विनियमन करना और उन्हें बनाए रखना तथा तत्संबंधी मामलों की देखभाल करना है। एनसीटीई को दिया गया अध्यादेश अत्यंत व्यापक है और वह अध्यापक शिक्षा कार्यक्रमों के समूचे कार्यक्षेत्रा को समाहित करता है जिसमें स्कूलों में, पूर्व-प्राथमिक, प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तरांे पर तथा गैर-औपचारिक शिक्षा, अंशकालिक शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा तथा दूरस्थ शिक्षा (पत्राचार) शिक्षा पाठ्यक्रमों को पढ़ाने के लिए व्यक्तियों को सुसज्जित करने के निमित्त अनुसंधान तथा व्यक्तियों का प्रशिक्षण शामिल है।

संगठनात्मक ढांचाः एनसीटीई का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है तथा इसके संविधिक दायित्वों की पूर्ति करने के लिए इसकी चार क्षेत्राीय समितियां हैं, जो बंगलुरू, भोपाल, भुवनेश्वर तथा जयपुर में स्थित हैं। एनसीटीई को नियोजित और समन्वित विकास तथा अध्यापक शिक्षा में नवाचारों की शुरुआत करने सहित अपने आबंटित कार्य निष्पादित करने में समर्थ बनाने के उद्देश्य से दिल्ली स्थित एनसीटीई में और साथ ही इसकी चार क्षेत्राीय समितियों में वित्त, स्थापना और विधिक मामलों और अनुसंधान, नीति नियोजन, मॉनीटरन, पाठ्यचर्चा, नवाचारों, पुस्तकालय तथा प्रलेखन, सेवाकालीन कार्यक्रमों पर कार्रवाई करने के लिए क्रमशः प्रशासनिक और शैक्षणिक स्कन्ध हैं। एनसीटीई मुख्यालय अध्यक्ष की अध्यक्षता में तथा प्रत्येक क्षेत्राीय समिति क्षेत्राीय निदेशक की अध्यक्षता में काम करती है।

क्षेत्राीय समितियांः जैसाकि राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् (एनसीटीई) अधिनियम के खण्ड 20 में परिकल्पना की गई है पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्रों में अध्यापक शिक्षा के संबंध में अपने संविधिक दायित्वों की देखभाल करने के लिए एनसीटीई की चार क्षेत्राीय समितियां हैं। क्षेत्राीय निदेशक की अध्यक्षता में ये समितियां क्रमशः भुवनेश्वर, भोपाल, जयपुर तथा बंगलुरू में स्थित हैं।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग

भारत का, प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक, उच्च शिक्षा के इतिहास में सदैव महत्वपूर्ण स्थान रहा है। प्राचीन काल में नालंदा, तक्षशिला एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालय, उच्च प्रशिक्षण के सुप्रसिद्ध पीठ थे जिनमें न केवल हमारे ही देश के छात्रा आकर्षित होते थे, बल्कि सुदूरवर्ती देशों, जैसेµकोरिया, चीन, बर्मा (म्यांमार), सीलोन (श्रीलंका), तिब्बत एवं नेपाल आदि के छात्रा भी आकर्षित होते थे। आज भारतवर्ष, विश्व के उच्चतम स्तर पर शिक्षा प्रणाली का प्रबंधन करता है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), देश में अनुदान प्रदान करने वाला एकमात्रा ऐसा अनूठा अभिकरण है जिसके अंतर्गत दो उत्तरदायित्व निहित हैं, पहला है निधि उपलब्ध कराना तथा दूसरा है उच्च शिक्षण संस्थानों में परस्पर समन्वयन, निर्धारण तथा मानकों का अनुरक्षण करना।

यूजीसी के विभिन्न स्वायत्त केंद्रः (i) इन्टर यूनिवर्सिटी एक्सीलरेटर सेंटर (पूर्व-न्यूक्लियर साइंस सेंटर); (ii) इंटर यूनिवर्सिटी सेन्टर फॉर एस्ट्रोनॉमी एण्ड एस्ट्रोफिजिक्स (IUCAA) पुणे, महाराष्ट्र; (iii) यूजीसी-(DAE) कंसोर्शियम फॉर साइंटिफिक रिसर्च (1989); (iv) कंसोर्शियम फॉर एजूकेशनल कम्यूनिकेशन (CEC) (1991); (v) सूचना एवं पुस्तकालय संचार तंत्रा (INFLIBNET (vi) अंतरराष्ट्रीय अध्ययन का अंतर-विश्वविद्यालय केंद्र तथा (IUCIS) (vii) राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद् (NAAC)

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का कार्यकरणः * विश्वविद्यालयी शिक्षा को प्रोन्नत एवं उसका समन्वयन करना।

* विश्वविद्यालयों में अध्यापन, परीक्षाओं एवं अनुसंधान के मानकों को निर्धारित एवं अनुरक्षित करना।

* शिक्षा के न्यूनतम मानकों पर विनियम तैयार करना।

* विश्वविद्यालयी/महाविद्यालयी शिक्षा के क्षेत्रों में विकास का पर्यवेक्षण करना तथा विश्वविद्यालयों/महाविद्यालयों के अनुदानों का संवितरण करना।

* संघ एवं राज्य सरकारों एवं उच्च शिक्षण संस्थानों के मध्यम एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में सेवाएं प्रदान करना।

* विश्वविद्यालयी शिक्षा में सुधार लाने के लिए जो उपाय आवश्यक हैं, उनके विषय में केंद्रीय एवं राज्य सरकारों को परामर्श प्रदान करना।

आयोग के उद्देश्यः राष्ट्रीय शिक्षण नीति (1986) के अनुसरण में, आयोग द्वारा अपनी कार्यप्रणाली को विकेन्द्रित करते हुए राज्यों की आवश्यकतानुसार 7 राज्यों में क्षेत्राीय कार्यालयों को खोला गया। इन कार्यालयों को स्थापित करने का लक्ष्य, विकेन्द्रीकरण, क्रियान्वयन तथा यह सुनिश्चित करना था कि देश भर में अनेक महाविद्यालय, जो कि यूजीसी अधिनियम की धारा (2च) एवं (12ख) से आवृत्त हैं उन्हें उनकी आवश्यकता एवं समस्यानुसार अधिकाधिक सुविधाएं सरलतापूर्वक उपलब्ध करायी जा सकें।

यूजीसी का निष्पादन मूल्यांकनः यूजीसी के भूतपूर्व अध्यक्ष हरि गौतम की अध्यक्षता में एक पैनल गठित किया गया जिसने अप्रैल 2015 में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को यूजीसी के कार्य के संबंध में अपनी रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं

* यूजीसी को समाप्त कर दिया जाना चाहिए और इसके स्थान पर एक राष्ट्रीय उच्च शिक्षा प्राधिकरण बनाया जाना चाहिए। यूजीसी के पुनर्गठन का कोई कार्य बेकार साबित होगा।

* यूजीसी अपना कार्य करने में विफल हो गया है। यह उभरती विविध जटिलताओं को देखने में योग्य नहीं रहा है।

* इस पर पक्षपात के आरोप लगते रहे हैं। यूजीसी ने शिक्षा में उत्कृष्टता स्थापित करने के अपने कार्य को दरकिनार कर दिया है।

* यूजीसी के अध्यक्ष को जवाबदेह बनाया जाए और तीन वर्ष में एक बार और पांच वर्ष के उनके कार्यकाल के अंत में उनके कार्य निष्पादन का मूल्यांकन किया जाए, जो कार्य मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा गठित समिति करे।

* यूजीसी की शक्तियों का धीरे-धीरे क्षरण हो रहा है।

* योगा और दिव्य साधना को विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।

* उपकुलपति बनने के 10 वर्ष के प्रोफेसर के मापदण्ड को समाप्त कर दिया जाना चाहिए।

हरि गौतम समिति की अनुशंसाओं के जवाब में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने कहा कि यूजीसी को एकपक्षीय तौर पर समाप्त नहीं किया जा सकता क्योंकि इसका गठन संसद के अधिनियम के माध्यम से किया गया है। शस्त्रा विश्वविद्यालय, तंजावुर के उपकुलपति आर. सेथुरमन ने कहा कि यूजीसी जैसा संविधिक निकाय विश्वविद्यालय शिक्षा के लिए जरूरी नीति वाहक है और मात्रा अनुदान वितरण प्राधिकरण नहीं हो सकता।

हालांकि, यूजीसी के भूतपूर्व सदस्य मानते हैं कि यूजीसी अपने कार्य में विफल नहीं हुआ है, लेकिन विगत समय में, नौकरशाही के कारण, यह अपनी सेवाओं को प्रदान करने में अक्षम रहा है। वैकल्पिक संरचना का सृजन समस्या का समाधान नहीं करेगा।

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