सर्वोच्च न्यायालय ने 6 जनवरी, 2018 को एक मां द्वारा दायर याचिका पर कहा कि व्यस्क लड़की अपनी पसंद का जीवन जीने का अधिकार रखती है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई में बेंच ने कहा, ‘‘इसके लिए विशेष रूप से जोर देने की आवश्यकता नहीं है। बालिगों को अपनी जिंदगी के फैसले लेने का पूरा अधिकार है। चाहे वह कपड़ों के लिए हो या कार्य के लिए या जीवन साथी के लिए हो। उनकी पसंद में न्यायालय उनका सुपर गार्जियन नहीं बन सकता।’’ तिरुवनंतपुरम् की निवासी एक महिला ने न्यायालय में याचिका दायर कर अपनी बेटी की कस्टडी मांगी थी। लड़की ने न्यायालय में कहा कि वह अपने पिता के साथ कुवैत में रह कर अपना करियर बनाना चाहती है।

न्यायालय ने कहा कि लड़की ने बिना किसी झिझक के स्पष्ट रूप से कहा है कि वह अपने पिता के साथ कुवैत में रहना चाहती है तथा लड़की व्यस्क है इसलिए उसे पूरा अधिकार है कि वह अपने लिए निर्णय ले सके। यद्यपि न्यायालय ने याचिकाकर्ता के पति को 13 साल के बेटे को गर्मी की छुट्टियों के दौरान केरल में मां के पास भेजने का आदेश दिया है। लड़की ने कहा कि वह इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन कर रही है तथा साथ ही कुवैत में हुंडई टेक्नोलॉजीस से इंटर्नशिप कर रही है।

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